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Ansuni Aawazen-Paper Back

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9788126706426
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भोपाल का गैस कांड, 1984 में दिल्ली और 1989 में भागलपुर में हुए दंगे, ओड़‍िसा का चक्रवात—ये कुछ घटनाएँ हैं जो हमारी सामूहिक स्मृति का हिस्सा बन चुकी हैं। लेकिन उन लोगों को हम अक्सर भूल जाते हैं जिन्हें वास्तव में इनका शिकार होना पड़ा था। इनके अलावा अन्य लोग भी हैं, मसलन—यौनकर्मी, दलित, सड़कों पर ज़ि‍न्दगी गुज़ारनेवाले बच्चे, एचआईवी और कोढ़ जैसे रोगों के मरीज़ तथा अकालपीड़ित लोग—ये सब भी हमारी स्मृति में अक्सर दाख़‍िल नहीं हो पाते। ये लोग उस जनसंख्या का हिस्सा हैं जिसे विकास और प्रगति के नाम पर समाज के सबसे बाहरी हाशिये पर धकेल दिया गया है। इस पुस्तक में सामाजिक कार्यकर्ता और प्रशासक हर्ष मन्दर अपने और अपने साथियों के अनुभवों के आधार पर ऐसे ही बीस लोगों की ज़ि‍न्दगियों का लेखा–जोखा पेश करते हैं—उनके संघर्ष का जो उन्होंने जीवित रहने, अपनी जिजीविषा को बचाए रखने के लिए किया। मिसाल के तौर पर बंगलौर के फुटपाथों पर भटकनेवाला वह बच्चा जो अब अपने जैसे दूसरे बच्चों को शिक्षा और रोज़गार पाने के मामले में मार्गदर्शन देता है, या फिर भोपाल गैस कांड में अनाथ हुआ वह ग्यारह वर्षीय किशोर जिसने अपने से छोटे दो बच्चों को पाला, एक युवा यौनकर्मी जिसने हैदराबाद की एचआईवी–पोजिटिव यौनकर्मी महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया, या फिर वह कुष्ठरोगी जिसने आशाग्राम में कुष्ठ कालोनी की स्थापना में सहायता देकर कोढ़ के कलंक से मुक्ति पाई। ये कहानियाँ सिर्फ़ ज़‍िन्दा–भर रहने के बारे में नहीं हैं, बल्कि ये सबूत के साथ बताती हैं कि इन लोगों ने किस तरह अपने विनम्र साहस, सहनशीलता और मानवीयता के बल पर परिस्थितियों पर फ़तह हासिल की। अनुभव की उष्ण अन्तर्धारा से सम्पन्न ये कहानियाँ जनसाधारण में निहित रचनात्मकता और जीवट को उजागर करती हैं और उन लोगों को चुनौती देती हैं जो भारत के भविष्य को लेकर निराश हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Isbn 10 8126706422
Edition Year 2002
Pages 174P
Price ₹95.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Harsh Mander

Author: Harsh Mander

हर्ष मन्दर

जन्म : 17 अप्रैल 1955

प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक और प्रशासक। लगभग दो दशकों तक मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कार्य। आदिवासियों, दलितों, विकलांगों और स्त्रियों के अधिकारों, सूचना के अधिकार, बँधुआ मज़दूरों, भूमि सुधार, बड़ी परियोजनाओं द्वारा विस्थापित लोगों के हितों और स्वास्थ्य तथा शिक्षा आदि मुद्दों से गहरा जुड़ाव और लेखन।

2002 में गुजरात में हुई साम्प्रदायिक हिंसा और उसमें प्रशासन की भूमिका के विरोध में आईएएस से त्यागपत्र।

सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया के ‘राइट टू फ़ूड कैम्पेन’ के स्पेशल कमिश्नर रहे हैं। यूपीए सरकार के अन्‍तर्गत नेशनल एडवाइजरी काउंसिल के सदस्य रह चुके हैं।

कई महत्त्वपूर्ण किताबों के लेखक और सह-लेखक। देश की प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में लेखन।  

प्रकाशित कृतियाँ : ‘लॉकिंग डाउन द पुअर : द पैंडेमिक एंड इंडियाज़ मोरल सेंटर’, ‘बिटवीन मेमोरी एंड फ़ॉरगेटिंग : मैसेकर एंड द मोदी इयर्स इन गुजरात’, ‘पार्टीशन ऑफ़ द हार्ट : अनमेकिंग द आइडिया ऑफ़ इंडिया’, ‘अनसुनी आवाज़ें’ आदि।

 

‘राजीव गाँधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार’, ‘एमए थॉमस नेशनल ह्यूमन राइट्स अवार्ड’, ‘साउथ एशियन माइनॉरिटी लॉयर्स हार्मनी अवार्ड’, ‘चिश्ती हार्मनी अवार्ड’ से सम्मानित।

सम्प्रति : डायरेक्टर, सेंटर फ़ॉर इक्विटी स्टडीज।

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