Aatmbodh Ke Ayam : Bhartiya Sangeet Ke Anahatnad

Author: Smriti Sharma
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Aatmbodh Ke Ayam : Bhartiya Sangeet Ke Anahatnad
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ज्ञान मनुष्य के लिए तभी सहायक होता है, जब वह अपने साथ-साथ समाज को ऊँचा उठाने का सामर्थ्‍य रखता हो और ब्रह्मज्ञान की सार्थकता तब होती है जब साधक अपने-आपको इतनी ऊँचाई तक ले जाए कि वह त्रिकालज्ञ बनाकर समाज को आत्मकल्याण के मार्ग में ले जाए। ब्रह्मज्ञानी के लोक और परलोक दोनों सुन्दर और सुखद हो जाते हैं, किन्तु ब्रह्मज्ञान प्राप्त करना अत्यन्त दुष्कर कार्य है। यह अध्यात्म के रास्ते चलकर भक्ति और रोग के धर्म को स्वीकृति प्रदान करके, कठिन साधना द्वारा प्राप्त किया जा सकता। अनाहतनाद की साधना ऐसी ही कठिन तपस्या है जिसे स्मृति शर्मा ने अपने अगम्य कार्य निष्ठा व अटूट मेहनत से पूर्ण किया। अनाहतनाद से आज के संगीत का जन्म हुआ है। भारतीय संगीत केवल मनोविनोद का साधन न होकर आत्मा को परमात्मा से जोड़ने के भक्ति मार्ग का परम कल्याणकारी साधन है। 'आत्मबोध के आयाम’ रचना संगीत एवं अध्यात्म के पाठकों का पथ प्रशस्त करेगी। सुधीजन इससे निश्चित ही लाभान्वित होंगे।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2018
Edition Year 2018, Ed. 1st
Pages 192p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Smriti Sharma

Author: Smriti Sharma

स्‍मृति शर्मा

रचनात्मक व सृजनात्मक व्यक्तित्व की धनी, अद्वितीय प्रतिभा से सम्पन्न, संगीत साधिका स्मृति शर्मा का जन्म 30 मई, 1980 को ज़ि‍ला—सतना, ग्राम—किरहाई (अमरपाटन), मध्य प्रदेश में हुआ।

प्राथमिक शिक्षा गाँव में, माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा रीवा में। वर्ष 2004 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा संचालित नेट परीक्षा उत्तीर्ण कर शासकीय ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय, रीवा में अति‍थि आचार्य के रूप में अध्यापन कार्य करते हुए ‘भारतीय संगीत में अनाहतनाद’ विषय पर शोध किया। इसी कालखंड में कैंसर जैसी घातक बीमारी की वेदना झेलते हुए 26 अप्रैल, 2012 को संसार को अलविदा कह दिया। 32 वर्ष से कम समय के जीवन में अनुभव में आए आत्मा के गूढ़ रहस्यों की तहों को उन्‍होंने इस पुस्तक में खोला है।

मेरे-तेरे में उलझा मन इस सत्य को नहीं जानता कि नाशवान शरीर के पीछे निराकार अविनाशी आत्मा है जिसे जानने के लिए उन्होंने संगीत और साहित्य, विज्ञान और दर्शन, ज्ञान और भक्ति तथा धर्म और कर्म का संयोजन किया। उन्होंने स्थानीय एवं राष्ट्रीय स्तर की कई सामाजिक एवं शैक्षणिक परिचर्चाओं में हिस्सा लिया। अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा द्वारा उन्‍हें अपने शोध पर ‘डॉक्टर ऑफ़ फिलासफ़ी’ की उपाधि से विभूषित किया गया।

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