Zarurat Isi Ki Thee

Edition: 2003, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Zarurat Isi Ki Thee

औद्योगिकीकरण ने हमारे जीवन को एक तरफ़ सुविधा-सम्पन्न बनाया तो दूसरी तरफ़ कई सामाजिक विकृतियों और विद्रूपताओं को भी बढ़ावा दिया। ऐसी ही एक विकृति है—बालश्रम, जो तमाम घोषणाओं और क़ानूनी कसरतों के बावजूद आज भी हमारे सामने भयावह रूप में उपस्थित है।

ग़रीबी की कोख से जन्मी इस अमानवीय प्रथा को राजनेता और अपराधी तत्त्वों के गठजोड़ ने कैसे अपने हित में इस्तेमाल किया और कर रहे हैं, इसी को इस नाटक में संवेदनशील भाषा और सन्तुलित रंग-संयोजन के माध्यम से नाटककार ने दर्शाया है।

समकालीन जीवन के बदलते मूल्यों, आदर्शों के क्षरण और असुरक्षा बोध की मार्मिक अभिव्यक्ति के साथ नाटक का सुखान्त नाटककार की सकारात्मक दृष्टि का संकेत देता है। नाट्यप्रेमी पाठकों, रंगकर्मियों और रंग-निर्देशकों को यह नाटक अपनी विचारोत्तेजकता तथा सटीक संवादों के कारण निश्चय ही प्रभावित करता है। यही कारण है कि बिहार के छोटे शहरों-क़स्बों से लेकर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, दिल्ली तक, अनेक मंचों पर इसका सफल मंचन हो चुका है।

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Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2003
Edition Year 2003, Ed. 1st
Pages 70p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Author: Krishna Ambashth

कृष्ण अम्बष्ठ

जन्म : सन् 1945 में बिहार राज्य के नालन्दा ज़िला के बिहार शरीफ़ प्रखंड अन्तर्गत मानपुर थाना स्थित सिंगधू नामक गाँव में।
शिक्षा : विधि स्नातक (मगध विश्वविद्यालय)।
प्रमुख कृतियाँ : ‘घूँघट हटते ही’, ‘विषैला अमृत’, ‘एक और रॉबिनहुड’ (उपन्यास); ‘चिट्ठी जो पढ़ी नहीं गई’, ‘उन्नीस कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘रास्ते और भी हैं’, ‘जोंक’, ‘ज़रूरत इसी की थी’, ‘ऐसा हो जाए तो...’ (नाटक); ‘लातों के देवता’ (नुक्कड़ नाटक); ‘मेहनतकश की दीवाली’ (काव्य-संकलन)।
अन्य : मगही में कहानियाँ, कविताएँ प्रकाशित। आकाशवाणी, पटना से कहानियाँ प्रसारित।
सम्पादन : एक साहित्यिक एवं एक सामाजिक पत्रिका।
सम्मान : अंकिता प्रकाशन, आसनसोल (पश्चिम बंगाल) से ‘गिरिजाकुमार माथुर सम्मान’ तथा अखिल भारतीय साहित्यकार अभिनन्दन समिति, मथुरा से ‘मैथिलीशरण गुप्त सम्मान’।
बिहार प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत्त।

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