Yahan Koi Gulmuhar Nahin Hai

Author: Shaival
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Yahan Koi Gulmuhar Nahin Hai

आज़ादी के बाद देश परिवर्तन के दो मुख्य पड़ावों से गुज़रा। पहले पड़ाव के बाद ज़मींदारी गई, नई योजना की तुरही बजी, टांड़-टिकोलों पर नए गढ़ बने। विकास की धारा बहने लगी। इस धारा ने गाँव-क़स्बों को नया स्वरूप दिया। नए छाया अधिपति बने। रंगदार, लठधर और अफ़सरों के बीच नए सत्ता-सम्बन्ध बने। विकास के गढ़ ‘उपनिवेश के मुख्यालय’ बन गए। भूमंडलीकरण दूसरा पड़ाव था, जिसने देश का चेहरा पूरी तरह बदल दिया। ‘रियासत’ छोड़कर गए ज़मींदार एन.आर.आई. बनकर अपने-अपने नए घरों में लौट आए। अपने परिवार के महान इतिहास को संरक्षित रखने और जड़ों को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए।...अन्दर की चीज़ें बाहर जाने लगीं, बाहर की चीज़ें अन्दर आने लगीं तो पता लगा, इसके कारण हमारी प्राथमिकताएँ ही बदल गईं। शिक्षा, विकास, आत्मनिर्भरता, मानवीयता, समुदायबोध—सबको लाँघता हुआ पहली सीढ़ी पर कुछ और आ बैठा। नौकरानी अपने महीने भर की कमाई ब्यूटी पार्लर में लुटाने पहुँच गई। कूलर जैसी जड़ मशीन प्राकृतिक जीवन की ऊष्मा खा गई। ज़िन्दगी वही नहीं रही, उसके मायने बदल गए। पुरानी संवेदनाओं का इस्तेमाल भर होने लगा, पर लक्ष्य पूरी तरह बदल गए।

भारतीय समाज यात्रा के मुख्य पड़ावों से जिन बाह्य और अन्दरूनी परिवर्तनों का शिकार हुआ, उन्हें गहराई में जाकर रेखांकित करती हैं ये कहानियाँ। दूसरे लहजे में कहें तो ‘नई लोक-संस्कृति’ की गवाह बनती हैं ये कहानियाँ।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2004
Edition Year 2004, Ed. 1st
Pages 164p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Shaival

Author: Shaival

शैवाल

जन्म : 23 फरवरी, 1949 में बेलछी के पास बाढ़ अनुमंडल में।

अनुभव : विगत कई वर्षों से कविता, कहानी, रपट व समीक्षा आदि का लेखन।

प्रमुख कृतियाँ : ‘समुद्रगाथा’, ‘मरुयात्रा’, ‘दामुल और अन्य कहानियाँ’, ‘दामुल : उपन्यासिका और अन्य कहानियाँ’, ‘सुप्रभा के घर में घोड़ा और अरण्य गाथा’ (सभी कहानी-संग्रह)।

पत्रकारिता : ‘रविवार साप्ताहिक’ के लिए ‘गाँव’ कॉलम का लेखन। पत्रिका ‘कथाबोध’ व ‘इन्दु’ का सम्पादन।

अनुवाद : रचनाओं का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद।

पुरस्कार : कथा-लेखन के लिए 1989 में ‘रेणु पुरस्कार’ एवं ‘गंगाशरण सिंह पुरस्कार’ से सम्मानित।

फ़िल्म : 1984 में ‘सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रीय पुरस्कार’ से सम्मानित फ़िल्म ‘दामुल’ के लिए कथा, स्क्रिप्ट एवं संवाद-लेखन; जयवन्‍त दलवी के मराठी नाटक पर आधारित फ़िल्म ‘पुरुष’ के लिए स्क्रिप्ट एवं संवाद-लेखन; फ़िल्म ‘मृत्युदंड’ कथा के लिए सर्वश्रेष्ठ कथा की श्रेणी में ‘सनसुई दर्शक अवार्ड’ के लिए नामित; दंगे पर लिखित कविताओं का उपयोग राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फ़िल्म ‘फ़ेसेज आफ़्टर द स्टार्म’ में।

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