Vikalp Ka Rasta

Author: Surendra Mohan
As low as ₹510.00 Regular Price ₹600.00
You Save 15%
In stock
Only %1 left
SKU
Vikalp Ka Rasta
- +

1991 में उदारीकरण की शुरुआत के साथ देश के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में जो बदलाव आए हैं, इस पुस्तक में उन्हीं का लेखा-जोखा है।

वरिष्ठ समाजवादी विचारक और राजनीतिज्ञ सुरेन्द्र मोहन ने इन लेखों में आर्थिक सुधारों की जारी प्रक्रिया के हर पहलू पर दृष्टिपात करते हुए अपनी अनुभवी नज़र से इस प्रक्रिया के अन्तर्विरोधों को उजागर किया है और एक समग्र विकल्प की तलाश पर बल दिया है ताकि हर तबक़े, हर व्यक्ति के लिए उपादेय हो।

पुस्तक में केन्द्र सरकारों की आर्थिक नीतियों के विकल्प का उल्लेख करने के साथ ही वायुमंडल की तपन से प्रभावित हो रहे पर्यावरण और मानव सभ्यता पर घिर रहे संकटों के निवारण की तरफ़ भी संकेत किया गया है।

विश्व आर्थिक मन्दी के भयानक दौर से देश कैसे बचा है, और भविष्य में भी इससे अर्थव्यवस्था को कैसे बचाया जा सकता है, इस विषय में वरिष्ठ समाजवादी विचारक हमें अपने विचारों से अवगत कराते हैं।

लेकिन पूरी पुस्तक का ज़ोर है एक वैकल्पिक समान राजनीतिक व्यवस्था की तलाश पर, जिसकी आवश्यकता इधर हर स्तर पर महसूस की जा रही है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2010
Edition Year 2010, Ed. 1st
Pages 400p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 3
Write Your Own Review
You're reviewing:Vikalp Ka Rasta
Your Rating
Surendra Mohan

Author: Surendra Mohan

सुरेन्द्र मोहन

जन्म : 4 दिसम्बर, 1926 को अम्बाला शहर (पंजाब) में।

समाजवादी विचारक और नेता के रूप में प्रतिष्ठित सुरेन्द्र मोहन युवावस्था से ही समाजवादी आन्दोलन से जुड़ गए थे। दो वर्ष तक काशी विद्यापीठ में समाजशास्त्र के प्राध्यापक रहने के बाद उन्होंने समाजवादी आन्दोलन के पूर्णकालिक कार्यकर्ता की भूमिका अपना ली और दशकों तक उसी रूप में सक्रिय रहे।

उनकी भूमिका केवल समाजवादी आन्दोलन तक ही सीमित नहीं रही। भारत के मज़दूर और किसान आन्दोलन से लेकर विभिन्न जनान्दोलनों और सर्वोदय आन्दोलन तक उनकी सक्रियता का विस्तार रहा। पीयूसीएल, जनान्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम), आज़ादी बचाओ आन्दोलन, देश बचाओ आन्दोलन, लोक राजनीतिक मंच जैसे संगठनों के गठन और संचालन में उनकी महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी रही। वे एक ऐसे विरल राजनेता थे जिन्होंने समता, धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, विकेन्द्रीकरण, सामाजिक न्याय, नागरिक अधिकार, मानवाधिकार, स्त्री अधिकार आदि के लिए न केवल निरन्तर संघर्ष किया, बल्कि एक महत्त्वपूर्ण विचारक के रूप में उन विषयों, मुद्दों, समस्याओं और चुनौतियों पर गम्भीर लेखन भी किया।

वे राज्यसभा के सदस्य भी थे।

निधन : 17 दिसम्बर, 2010

 

 

Read More
Books by this Author
Back to Top