Ve Bhi Din The

Author: Shivnath
Translator: Nirmal Vinod
Edition: 2019, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Ve Bhi Din The
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‘वे भी दिन थे’ शिवनाथ जी की आत्मकथात्मक डोगरी पुस्तक 'ओह बी दिन हे' का अनुवाद है। शिवनाथ बतौर व्यक्ति और लेखक, ऐसी शख़्सियत थे, जिनकी दृष्टि सूक्ष्म और सुदूर दोनों बिन्दुओं पर समान एकाग्रता से रहती थी। इस पुस्तक में उन्होंने 1950 में भारतीय डाक सेवा ज्वाइन करने के बाद से अपने संस्मरण, अनुवाद और विचार अंकित किए हैं। उनके विवरण की विशेषता यह है कि जहाँ-जहाँ वे रहे, उस शहर के वातावरण, साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों और महत्त्वपूर्ण स्थलों को उन्होंने गहरी नज़र से देखा, जिसका वर्णन भी वे इस पुस्तक में देते हैं। साथ ही डाक विभाग की कार्य-प्रक्रिया, संचार के इस देश-व्यापी संजाल की दिक़्क़तों और सम्भावनाओं की भी जानकारी देते चलते हैं। वे जिज्ञासु, ज्ञान-पिपासु और सेवा-भावी व्यक्ति थे। कर्तव्यनिष्ठा को उनके व्यक्तित्व से एक नया ही अर्थ मिलता था, जिसकी झलक हमें इस पुस्तक में भी मिलती है। कुछ स्थानों और व्यक्तियों का विवरण देखते ही बनता है।

पुस्तक में डैनिश साधु शून्यता से उनकी पहली मुलाक़ात का वर्णन भी है। उनकी मैत्री 1952 से शुरू होकर 1982 तक चली। सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने उनके पत्रों पर केन्द्रित एक पुस्तक 'शून्यता' का सृजन भी किया। डोगरी को स्वतंत्र भाषा के रूप में मान्यता दिलाने में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई, इसका ज़िक्र भी उन्होंने विस्तार से किया है।

 

“हिन्दी में आत्मकथाएँ और जीवनियाँ कम ही हैं। लेखकों की आत्मकथाएँ तो और भी बहुत कम, लगभग गिनती की। शिवनाथ डोगरी के एक बड़े लेखक होने के अलावा सिविल सेवक भी थे। उनकी यह आत्मकथा उनके निरभिमानी व्यक्तित्व, लम्बे सार्वजनिक जीवन, उसके उतार-चढ़ावों और लेखकीय संघर्ष की, बिना किसी नाटकीयता के, तथा कथा है। हमें उसे प्रस्तुत करते हुए प्रसन्नता है।"

—अशोक वाजपेयी

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2019
Edition Year 2019, Ed. 1st
Pages 135p
Translator Nirmal Vinod
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
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Shivnath

Author: Shivnath

शिवनाथ

डोगरी भाषा को राष्ट्रीय फलक पर प्रतिष्ठित करनेवाले लेखकों में अग्रणी, गहरी मानवीय संवेदना से सम्पन्न विचारक और प्रशासक शिवनाथ का जन्म 18 फरवरी, 1925 को जम्मू के एक मध्यवित्त परिवार में हुआ था। गहन अध्यवसाय और अथक परिश्रम के चलते उनका चुनाव भारतीय प्रशासनिक सेवा में हुआ। वे पोस्ट्स एंड टेलीग्राफ़ बोर्ड के सदस्य और भारत सरकार के पदेन अतिरिक्त सचिव, चौथे केन्द्रीय वेतन आयोग के सलाहकार और साहित्य अकादेमी की जनरल काउंसिल के सदस्य रहे।

साहित्य अकादेमी द्वारा प्रकाशित ‘द हिस्ट्री ऑफ़ डोगरी लिटरेचर' के अलावा उन्होंने डोगरी में बीस से ज़्यादा पुस्तकों का लेखन और अनुवाद किया। ‘ओह बी दिन हे' (डोगरी) उनकी आत्मकथात्मक पुस्तक है। ‘जम्मू मिसलैनी' (अंग्रेज़ी) में उन्होंने जम्मू के ऐतिहासिक, भौगोलिक, सांस्कृतिक और प्रशासनिक पक्षों पर तथ्यात्मक प्रकाश डाला है।

डोगरी और अंग्रेज़ी भाषाओं में उनके द्वारा लिखित, सम्पादित और अनूदित 20 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। उनके डोगरी निबन्ध-संग्रह ‘चेतें दी चितकबरी' पर उन्हें 2009 में ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ प्राप्त हुआ। साहित्य अकादेमी की दो बृहत् परियोजनाओं ‘इनसाइक्लोपीडिया ऑफ़ इंडियन लिटरेचर' और ‘एन एंथ्रोपोलॉजी ऑफ़ माडर्न इंडियन लिटरेचर’ के डोगरी प्रभाग से सम्बद्ध रहे।

उनका देहावसान 7 फ़रवरी, 2013 में हुआ।

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