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Umraojan Adaa-Paper Back

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9788126711413
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उमराव जान ‘अदा’ उर्दू के आरम्भिक उपन्यासों में अहम स्थान रखता है। वस्तुतः यह आत्मकथात्मक उपन्यास है जिसे मिर्ज़ा हादी ‘रुस्वा’ ने क़लमबन्द किया है। शायर होने के नाते लेखक तवायफ़-शायर उमराव जान ‘अदा’ को काफ़ी क़रीब से जनता था। उमराव ने अपने संस्मरण स्वयं मिर्ज़ा को सुनाए थे।

फ़ैज़ाबाद की बच्ची ‘अमीरन’ के लखनऊ में तवायफ़ उमराव जान से शायरा ‘अदा’ बनने तक के सफ़र को समेटती हुई यह कथा उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की विडम्बनाओं, विसंगतियों तथा अंग्रेज़ी दौर की तबाहियों का भी ख़ाक़ा खींचती है। अपने रूप-सौन्दर्य, मधुर कंठ, नृत्य-कला, नफ़ासत तथा अदबी तौर-तरीक़ों के कारण उमराव जान अमीरों-रईसों में ससम्मान लोकप्रिय रही। बचपन में ही बेघर हो जाने की वजह से ताउम्र वह मोहब्बत की तलाश में भटकती रही। उसने वे सारी त्रासदियाँ भोगीं जो एक संवेदनशील व्यक्ति के दरपेश होती हैं।

उपन्यास में भाषा का इस्तेमाल पत्र और परिस्थिति के अनुकूल है जो मार्मिक है और प्रभावशाली भी। उर्दू के अवधी लहजे की मिठास इसकी सबसे बड़ी ख़ासियत है। अनुवादक गिरीश माथुर ने मूल भाषा की सजीवता बरकरार रखी है।

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Girish Mathur
Editor Not Selected
Publication Year 1988
Edition Year 2016, Ed. 5th
Pages 96p
Price ₹95.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 13.5 X 0.5
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Mirza Haadi 'Ruswa'

Author: Mirza Haadi 'Ruswa'

मिर्ज़ा हादी रुस्वा

मूलतः शायर लेकिन लोकप्रिय हुए उपन्यासकार के नाते। सन् 1857 ई. के विद्रोह का काल उनके जीवन और रचनाकर्म का समय रहा है। शायरी की कोई पुस्तक उपलब्ध नहीं है। वे लखनऊ के रहनेवाले थे। मशहूर तवायफ़ उमराव जान ‘अदा’ को निजी तौर पर जानते थे। उसके जीवन-संघर्ष ने उन्हें अन्तस तक आलोड़ित किया तथा वह उपन्यास लिखने को प्रेरित हुए। उनके शेष जीवन के सम्बन्ध में अधिक जानकारी नहीं मिलती।

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