हिन्दी जगत के प्रसिद्ध उपन्यासकार भगवतीचरण वर्मा का प्रस्तुत उपन्यास ‘तीन वर्ष’ एक ऐसे युवक की कहानी है जो नई सभ्यता की चकाचौंध से पथभ्रष्ट हो जाता है। समाज की दृष्टि में उदात्त और ऊँची जान पड़नेवाली भावनाओं के पीछे जो प्रेरणाएँ हैं, वह स्वार्थपरता और लोभ की अधम मनोवृत्तियों की ही देन हैं।
पहली बार विश्वविद्यालय को केन्द्र में रखकर छात्र-छात्राओं के जीवन-प्रसंगों को हिन्दी कथा-साहित्य में इतना सहज स्थान प्राप्त हुआ। उनका रहन-सहन, उनके प्रेम-सम्बन्ध और उनकी मनोदशाओं का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करना इस उपन्यास का उद्देश्य था। छात्रों के संवेगों के बहुआयामी चित्र समस्त सामाजिक सन्दर्भों से जुड़कर प्रत्यक्ष हुए।
इस उपन्यास से यह भी स्पष्ट हुआ कि विश्वविद्यालयीन शिक्षा तब सामान्य युवाजन के लिए उपलब्ध नहीं थी। थोड़े से सम्पन्न घरों के सौभाग्यवान युवा ही उस ज़माने में विश्वविद्यालयों में पढ़ने आया करते थे। कुल मिलाकर शिक्षा के विस्तार और प्रसार में आए अन्तर को आँकने और छात्रों की मन:स्थितियों के विकास के अध्ययन के लिए भी इस उपन्यास को पढ़ा जाना ज़रूरी है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 1936 |
Edition Year | 2019, Ed. 2nd |
Pages | 208p |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 1.5 |