Sampurna Kahaniyan : Bhagwaticharan Verma

Fiction : Stories,Sampoorana Kahaniyan
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Sampurna Kahaniyan : Bhagwaticharan Verma

लब्धप्रतिष्ठ कथाकार भगवतीचरण वर्मा की कहानियों में हमारे जीवन के सुख-दु:ख, प्रेम-घृणा, अहं, अन्ध-आस्था, राजनीति का छिछोरापन और धार्मिक उन्माद का जीवन्त चित्रण तो मिलता ही है, तरल संवेदनाओं की एक सतत प्रवहमान धारा भी दिखती है। कहानी का विषय चाहे कुछ भी हो, भगवतीचरण वर्मा की क़िस्सागोई का शिल्प ऐसा अनूठा है कि घटनाएँ, स्थितियाँ और पात्रों के हावभाव हमारे सामने साकार हो उठते हैं। ‘दो रातें’, ‘रेल में’, ‘इंस्टालमेंट’, ‘आवारे’ आदि दर्जनों कालजयी कहानियाँ अपने यथार्थबोध और सामाजिक चेतना के कारण आज भी प्रासंगिक हैं। यह उनके कथाकार की सफलता है कि अपनी तरफ़ से बिना कुछ कहे कहानियों के माध्यम से ही वे सब कुछ कह जाते हैं। इसीलिए विचारों की बोझिलता से ये कहानियाँ मुक्त हैं। व्यंग्य का पुट इन कहानियों की अतिरिक्त विशेषता है।

‘प्रायश्चित्त’ जहाँ अन्ध-धार्मिक आस्था पर चोट करती है, वहीं ‘ख़ानदानी हरामजादे’ राजनीतिक छिछोरेपन को पूरी तरह उघाड़कर रख देती है। ‘पराजय और मृत्यु’ जीवन की पक्षधरता की कहानी है तो ‘शस्त्र और चिंगारी’ उत्तरदायित्व के बोझ तले पिसती एक
युवती की दास्तान कहती है। ‘दो बाँके’ और ‘मोर्चाबंदी’ हृदय अहं का जीवन्त चित्रण बन गई हैं।

उपन्यासों के लिए विशेष तौर पर जाने जानेवाले भगवती बाबू की कहानियों का यह समग्र संकलन उनके कथाकार का एक नया आयाम खोलता है।

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2002
Edition Year 2020, Ed. 5th
Pages 368p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2.5
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Bhagwaticharan Verma

Author: Bhagwaticharan Verma

भगवतीचरण वर्मा

जन्म : 30 अगस्त, 1903; उन्नाव ज़‍िले (उ.प्र.) का शफीपुर गाँव।

शिक्षा : इलाहाबाद से बी.ए., एल.एल.बी.।

प्रारम्भ में कविता-लेखन। फिर उपन्यासकार के नाते विख्यात। 1933 के क़रीब प्रतापगढ़ के राजा साहब भदरी के साथ रहे। 1936 के लगभग फ़‍िल्म कार्पोरेशन, कलकत्ता में कार्य। कुछ दिनों ‘विचार’ नामक साप्ताहिक का प्रकाशन-सम्पादन। इसके बाद बम्बई में फ़‍िल्म-कथालेखन तथा दैनिक ‘नवजीवन’ का सम्पादन। फिर आकाशवाणी के कई केन्द्रों में कार्य। बाद में, 1957 से मृत्यु-पर्यन्त स्वतंत्र साहित्यकार के रूप में लेखन। ‘चित्रलेखा’ उपन्यास पर दो बार फ़‍िल्म-निर्माण और ‘भूले-बिसरे चित्र’ ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से सम्मानित। ‘पद्मभूषण’ तथा राज्यसभा की मानद सदस्यता प्राप्त।

 

प्रकाशित पुस्तकें : ‘अपने खिलौने’, ‘पतन’, ‘तीन वर्ष’, ‘चित्रलेखा’, ‘भूले-बिसरे चित्र’, ‘टेढ़े-मेढ़े रास्ते’, ‘सीधी सच्ची बातें’, ‘सामर्थ्य और सीमा’, ‘रेखा’, ‘वह फिर नहीं आई’, ‘सबहिं नचावत राम गोसाईं’, ‘प्रश्न और मरीचिका’, ‘चाणक्य’, ‘थके पाँव’, ‘युवराज चूण्डा’, ‘धुप्पल’ (उपन्यास); ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’, ‘मेरी कहानियाँ’, ‘मोर्चाबन्दी’ तथा ‘सम्पूर्ण कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘मेरी कविताएँ’, ‘सविनय और एक नाराज कविता’ (कविता-संग्रह); ‘मेरे नाटक’, ‘वसीयत’, ‘सम्‍पूर्ण नाटक’ (नाटक); ‘अतीत के गर्त में’, ‘कहि न जाय का कहिए’ (संस्मरण); ‘साहित्य के सिद्धान्त तथा रूप’ (साहित्यालोचन); ‘भगवतीचरण वर्मा रचनावली’—14 खंड (सम्पूर्ण रचनाएँ)।

निधन : 5 अक्टूबर, 1981

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