Stree : Yaunikta Banam Aadhyatmikta

Author: Pramila K.P.
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Stree : Yaunikta Banam Aadhyatmikta

हिन्दी में विमर्श-ग्रन्थों की दुर्दशा का एक कारण आत्ममन्थन की जगह आत्मश्लाघा का होना है। छोटे-बड़े मंचों पर बड़ी-बड़ी बातें अवश्य की जाती हैं, पर रूढ़ियों में जकड़े व्यक्ति की नीयत उसकी देह-भाषा और बातचीत से ज़ाहिर हो ही जाती है। हिन्दी में उपलब्ध ज़्यादातर विमर्श-ग्रन्थों का यही द्वन्द्व है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति-केन्द्रित अनुभवों से ऊपर उठकर समष्टि मनुष्य के व्यापक हित की ओर ध्यान केन्द्रित करने की ज़रूरत है।

आज प्रचलित सभी विमर्शों में स्त्री-विमर्श अपने सर्वव्यापी वैचारिक महत्त्व के कारण सबसे महत्त्वपूर्ण है। इसका ताल्लुक़ संसार की आधी आबादी से है। वह आबादी जिसकी रचनात्मकता के सक्रिय योगदान से यह दुनिया अभी तक वंचित रही आई है; और जिसके योगदान को रेखांकित करने की कोई प्रविधि पुरुष की मनीषा ने अभी तक ईजाद नहीं की। आज के स्त्री-विमर्श का यह दायित्व है कि वह सभी वर्गों के लोगों की चेतना को इस दिशा में संवेदित करे। स्त्री-विमर्श का सचेतन प्रयास होना चाहिए कि सांस्कृतिक जन-जीवन को समग्रता के साथ ग्रहण कर समष्टि चिन्तन को व्यापक रूप दिया जाए। प्रस्तुत किताब इसी प्रयास को महत्ता के साथ रेखांकित करती है।

यह किताब स्पष्ट करती है कि स्त्री-विमर्श के साथ मनुष्य-जीवन के सभी पक्षों व विषयों का उचित समायोजन हो, क्योंकि स्त्री-पक्ष और स्त्री-चिन्तन का सतत पुनर्वाचन एक ऐतिहासिक ज़रूरत है। विज्ञान और संचार-क्रान्ति की सम्भावनाओं में डूबते-उतराते ‘सांस्कृतिक-जनजीवन’ के समक्ष यह किताब स्त्री-विमर्श की राह को प्रशस्त तो करती ही है, साथ ही यह उम्मीद भी करती है कि ख़ुद के साथ समस्त जीवों की संवेदनात्मक तपिश व वैचारिक उधेड़बुन से उपजे कुछ तथ्य सामने आएँ, ताकि स्त्री-विमर्श को नव-अन्तरानुशासिक मार्ग से आगे बढ़ाया जा सके। इसमें सन्देह नहीं कि समकालीन स्त्री-चिन्तन, लिंग-संवेदना, स्त्री-प्रकृति, स्त्री-यौनिकता, देह-विमर्श, सांस्कृतिक संक्रमण, सिनेमा आदि विषयों के समायोजन में हिन्दी में यह पहला प्रयास है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2010
Edition Year 2010, Ed. 1st
Pages 261p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Author: Pramila K.P.

प्रमला के.पी.

जन्म : 4 मई, 1967; मंडूर, ज़िला—कण्णूर, केरल।

हिन्दी, मलयालम और अंग्रेज़ी में लेखन और अनुवाद कार्य।

हिन्दी में आलोचनात्मक किताबें : ‘विमर्श और विस्तार’, ‘स्त्री अस्मिता और समकालीन कविता’,
‘स्त्री : यौनिकता बनाम आध्यात्मिकता’, ‘कविता का स्त्रीपक्ष’, ‘भाषान्तरण-भावान्तरण’, ‘स्त्रीमुक्ति और कविता’, ‘औरत की अभिव्यक्ति एवं आदमी का अधिकार’ आदि।

अनूदित किताबें : निर्मला पुतुल, कात्यायनी और पवन करण की कविताओं का मलयालम में अनुवाद।

सरोजिनी साहू की रचनाओं—उपन्यास, कहानी एवं आलोचना—का मलयालम और हिन्दी में अनुवाद।

सम्प्रति : श्रीशंकराचार्य विश्वविद्यालय, कालडी में कार्यरत।

सम्मान : ‘कविता का स्त्री पक्ष’ पर ‘देवीशंकर अवस्थी स्मृति सम्मान’।

ई-मेल : prameelakp2011@gmail.com

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