Stree-Adhikaron Ka Auchitya-Sadhan

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Stree-Adhikaron Ka Auchitya-Sadhan
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मेरी की यह सर्वप्रमुख कृति 1792 में प्रकाशित हुई। प्रकाशित होने के साथ ही इसकी ख्याति इंग्लैंड के बाहर पूरे यूरोप में और अमेरिका तक में फैल गई। मेरी ने इस कृति में प्रबोधनकाल की तर्कणा और बुर्जुआ क्रान्ति के ‘स्वतंत्रता-समानता-भ्रातृत्व’ के सिद्धान्तों को स्त्री-समुदाय के ऊपर भी समान रूप से लागू करते हुए स्पष्ट शब्दों में यह स्थापना दी कि कोई भी समतावादी सामाजिक दर्शन तब तक वास्तविक अर्थों में समतावादी नहीं हो सकता, जब तक कि वह स्त्रियों को समान अधिकार और अवसर देने की तथा उनकी हिफ़ाज़त करने की हिमायत नहीं करता। इस स्मारकीय कृति में मेरी वोल्सटनक्राफ़्ट ने ‘शिक्षा की कपटपूर्ण और कृत्रिम प्रणाली’ की निर्भीक-विध्वंसक आलोचना प्रस्तुत करते हुए यह तर्क दिया है कि यह मध्यवर्ग की स्त्रियों को ‘नारीत्व’ (फ़ेमिनिनिटी) के मिथ्याभासी दमघोंटू आदर्शों के दायरे में जीने के लिए तैयार करती है। शैशवावस्था से ही उन्हें यह शिक्षा दी जाती है कि ‘सौन्दर्य स्त्रियों का राजदंड होता है, कि दिमाग़ शरीर के हिसाब से अपने को ढालता है (यानी शारीरिक भिन्नता के चलते स्त्रियों का दिमाग़ भी अ़लग क़िस्म का होता है), और अपने स्वर्णजड़ित पिंजरे में चक्कर काटते हुए वे अपनी जेल को पसन्द करना सीख जाती हैं।’

मेरी वोल्सटनक्राफ़्ट ने अपने समाज के उग्र पुरुष-वर्चस्ववादी, रूढ़िवादी परिवेश में स्त्रियों को ‘तर्कपरक प्राणी’ के रूप में सम्बोधित करने का साहस किया और ऐसे व्यापकतर मानवीय आदर्शों का आकांक्षी बनने के लिए उनका आह्वान किया जिनमें अनुभूति के साथ तर्कणा और स्वतंत्रता के अधिकार का संश्लेषण हो।

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Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2003
Edition Year 2014, Ed. 2nd
Pages 261p
Translator Meenakshi
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Author: Meri Volsatanakrafta

मेरी वोल्सटनक्राफ़्ट

जन्म : 27 अप्रैल, 1759 को स्पिटलफ़ील्ड्स, लन्दन।

मेरी वोल्सटनक्राफ़्ट का नाम भारत के स्त्री-मुक्ति विमर्श में अपरिचित-सा तो है ही, पश्चिम के साहित्यिक-वैचारिक दायरों में भी उन्‍हें लगभग भुलाया जा चुका है। हमारे देश में स्त्री-आन्दोलन से जुड़े बहुतेरे लोग इस तथ्य से अवगत नहीं हैं कि स्त्री-मुक्ति विमर्श की सुदीर्घ परम्परा में जिस कृति को प्रथम क्लासिकी कृति होने का श्रेय प्राप्त है, वह है मेरी वोल्सटनक्राफ़्ट की पुस्तक ‘स्त्री-अधिकारों का औचित्य-साधन’ (A Vindication of the Rights of Woman, 1792)।

अपनी इस पुस्तक में मेरी वोल्सटनक्राफ़्ट ने तत्कालीन परम्परागत शिक्षा-प्रणाली में स्त्रियों के लिए निहित निर्देशों-नियमों-वर्जनाओं और नैतिक-सामाजिक मान्यताओं को इसलिए प्रहार का विशेष निशाना बनाया है, क्योंकि उनका मानना था कि स्त्रियों को ‘अज्ञान और दासों जैसी निर्भरता’ की स्थिति में बनाए रखने में इनकी विशेष भूमिका होती है। लेकिन वे यहीं तक सीमित नहीं रहतीं। वे पुरुष-आधिपत्य को स्वाभाविक चीज़ के रूप में स्वीकारने वाली उन तमाम जड़ीभूत प्रस्तरीकृत मान्यताओं और नैतिक-वैधिक संस्थाओं-मूल्यों पर मारक चोट करती हैं जो प्राकृतिक न्याय और समानता के अधिकार से स्त्रियों को वंचित करते हैं। वे ख़ास तौर पर उस समाज-व्यवस्था की प्रखर आलोचना करती हैं जो ‘आज्ञापरायण बनने और अन्य सभी चीज़ों को छोड़कर अपने सौन्दर्य के प्रति सजग होने के लिए’ स्त्रियों को प्रोत्साहित करती हैं।

निधन : 10 सितम्बर, 1797

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