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Meri Volsatanakrafta

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मेरी वोल्सटनक्राफ़्ट

जन्म : 27 अप्रैल, 1759 को स्पिटलफ़ील्ड्स, लन्दन।

मेरी वोल्सटनक्राफ़्ट का नाम भारत के स्त्री-मुक्ति विमर्श में अपरिचित-सा तो है ही, पश्चिम के साहित्यिक-वैचारिक दायरों में भी उन्‍हें लगभग भुलाया जा चुका है। हमारे देश में स्त्री-आन्दोलन से जुड़े बहुतेरे लोग इस तथ्य से अवगत नहीं हैं कि स्त्री-मुक्ति विमर्श की सुदीर्घ परम्परा में जिस कृति को प्रथम क्लासिकी कृति होने का श्रेय प्राप्त है, वह है मेरी वोल्सटनक्राफ़्ट की पुस्तक ‘स्त्री-अधिकारों का औचित्य-साधन’ (A Vindication of the Rights of Woman, 1792)।

अपनी इस पुस्तक में मेरी वोल्सटनक्राफ़्ट ने तत्कालीन परम्परागत शिक्षा-प्रणाली में स्त्रियों के लिए निहित निर्देशों-नियमों-वर्जनाओं और नैतिक-सामाजिक मान्यताओं को इसलिए प्रहार का विशेष निशाना बनाया है, क्योंकि उनका मानना था कि स्त्रियों को ‘अज्ञान और दासों जैसी निर्भरता’ की स्थिति में बनाए रखने में इनकी विशेष भूमिका होती है। लेकिन वे यहीं तक सीमित नहीं रहतीं। वे पुरुष-आधिपत्य को स्वाभाविक चीज़ के रूप में स्वीकारने वाली उन तमाम जड़ीभूत प्रस्तरीकृत मान्यताओं और नैतिक-वैधिक संस्थाओं-मूल्यों पर मारक चोट करती हैं जो प्राकृतिक न्याय और समानता के अधिकार से स्त्रियों को वंचित करते हैं। वे ख़ास तौर पर उस समाज-व्यवस्था की प्रखर आलोचना करती हैं जो ‘आज्ञापरायण बनने और अन्य सभी चीज़ों को छोड़कर अपने सौन्दर्य के प्रति सजग होने के लिए’ स्त्रियों को प्रोत्साहित करती हैं।

निधन : 10 सितम्बर, 1797

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