Srijnatmak Aur Shantimay Jeevan Ke Liye Shiksha

Author: Devi Prasad
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Srijnatmak Aur Shantimay Jeevan Ke Liye Shiksha

आज की प्रतियोगितावादी और मशीनी दुनिया में हमारे सामने अनेक नई समस्याएँ और प्रश्न उठ खड़े हुए हैं। इन्हीं में एक प्रमुख प्रश्न हमारी शिक्षा से भी सम्बन्ध रखता है, क्योंकि यही वह औज़ार है जो हमें लगातार असहिष्णु होती दुनिया में बेहतर मनुष्य बनाने में काम आ सकता है। आख़‍िर शिक्षा है क्या? उसका उद्देश्य क्या है? शिक्षा के प्रमुख अंग क्या होने चाहिए? आज के बच्चे, आज की शिक्षा पाने के बाद, किस प्रकार के नागरिक बनेंगे?

आज ज़रूरत यह है कि बच्चे और वयस्क ऐसी शिक्षा पाएँ कि वे आपस में एक-दूसरे के नज़दीक होने के साथ-साथ सारे समाज से जुड़ें और सारी मानव जाति एक होकर समता और आत्मीयता से पूर्ण जीवन बिताए।

पुस्तक के लेखक का मानना है कि हम कला और उद्योग को शिक्षा-पद्धति का केन्द्र बनाएँ, क्योंकि वह हमारे समाज को सन्तुलित करने का काम कर सकती है। देवी प्रसाद का यह विचार उनकी उस आन्तरिक समझ से सम्बन्ध रखता है जो तथाकथित आधुनिकता के विकास से जुड़ी हुई है। वे कहते हैं कि व्यक्ति की सृजनात्मकता का ख़ात्मा आज की शिक्षा-व्यवस्था के द्वारा हुआ है जिसने हमें अत्यन्त भयानक और अवसरवादी अवस्था में डाल दिया है।

हमारे समाज में निचले तबक़े के लोगों के लिए कुछ भी ऐसा बाक़ी नहीं रहता जिसकी कोई अहमियत हो। यह इसलिए क्योंकि निर्णय वे लेते हैं जो समाज के ‘पिरामिड’ की चोटी पर विराजमान हैं। इसलिए यह पुस्तक उस पिरामिड को सीधा करने की कोशिश करती है। यह आधुनिकता की व्याख्या को भी बदलने का प्रयास करती है।

यह कहना यथेष्ट होगा कि यह पुस्तक उन लोगों के लिए है जो हमारे पूरे संसार की चिन्ता करते हैं, केवल शिक्षा-व्यवस्था की नहीं। यह एक ऐसे व्यक्ति के लम्बे अनुभव और विचारों को दर्शाती है जो शान्तिवाद की मुहिम में प्रत्यक्ष रूप से लगा हुआ था।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2009
Edition Year 2009, Ed. 1st
Pages 136p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1
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Devi Prasad

Author: Devi Prasad

देवी प्रसाद

अक्टूबर,  1921  को  देहरादून  में जन्मे देवी प्रसाद ने 1938 में शान्ति निकेतन से कलास्नातक की उपाधि प्राप्त  की।  वहाँ  उन्हें  गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर का सान्निध्य भी प्राप्त हुआ। सन् 1944 में वे बच्चों के लिए कला और शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करने गांधी जी के आश्रम सेवाग्राम गए।

देवी प्रसाद भारत में कुम्भकारिता की कला के एक प्रख्यात कलाकार माने जाते हैं। वर्ष 2007 में ललित कला अकादमी द्वारा उन्हें ‘ललित कला रत्न’ से सम्मानित किया गया। विश्वभारती (शान्तिनिकेतन) द्वारा ‘देशिकोत्तम्’ (डी.लिट्. ओनारिस कोसा) की उपाधि से अलंकृत किया गया।

उनकी कलाकृतियों की अनेक प्रदर्शिनयाँ समय-समय पर देश-विदेश में विभिन्न स्थानों में होती रही हैं। मई, 2010 में उनकी जीवनी और कलाक्षेत्र में गत् 60 वर्षों के योगदान को लेकर ललित कला अकादमी में एक प्रदर्शनी ललित कला अकादमी और नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय के सौजन्य से हुई। प्रदर्शनी से सम्‍बन्धित एक पुस्तक ‘द मेकिंग ऑफ़ ए मॉडर्न इंडियन आर्टिस्ट-क्राफ़्टमेन : देवी प्रसाद’ प्रकाशित।

निधन : 1 जून, 2011

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