Sookhi Ret

जीलानी बानो के उपन्यासों और कहानियों से आज के समय के बदलते जीवन–मूल्यों और सामाजिक अन्तर्विरोधों की जो तस्वीर बनती है, वह बहुत संजीदा तो है ही साथ ही पूरी तरह दोमुँही सोच की असलियत को बेपर्दा करते हुए समाज और जीवन से तआल्लुक़ रखनेवाली हर चीज़ को अपने में शामिल करती चलती है।
‘सूखी रेत’ की कहानियाँ स्त्री–जीवन के उस मरुस्थल को भी प्रतिबिम्बित करती हैं, जो सदियों से विस्तारित होता चला आया है और उसकी तपिश और ख़लिश से वह न तो उकताती है और न ही हार मानती है। नारी का यही अन्तर्विरोध एक प्रतिकार बनने से कैसे, कहाँ चूक जाता है, इसी मसले की दास्ताँ है ‘सूखी रेत’, जहाँ ढेर सारे बहलावे हैं और ख़ूब सारे सपने, जो पूरी तरह मृग–मरीचिका बन जाते हैं। वह हमेशा इत्मीनान करती है कि अब पानी पास ही है, वहाँ तक पहुँचने की जद्दोजहद और फिर प्यासे रह जाने की तड़प। लेकिन जीलानी बानो की कहानियों के नारी–पात्र बार–बार प्यासे रह जाने और अपनी तकमील की तलाश के नाकाम हो जाने को अपनी क़िस्मत नहीं मानते, वे सब न तो छिछला विद्रोह करते हैं और न ही अपनी गरिमा से च्युत होते हैं; बस वे सुलग रहे हैं भीतर ही भीतर। इस रेगिस्तान से निकलने की मुकम्मल राह तलाशते हुए।
एक उल्लेखनीय और महत्त्वपूर्ण कथा-संग्रह।
Language | Hindi |
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Format | Hard Back |
Publication Year | 2001 |
Edition Year | 2001, Ed. 1st |
Pages | 151p |
Translator | Surjeet |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1 |
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