जीलानी बानो के उपन्यासों और कहानियों से आज के समय के बदलते जीवन–मूल्यों और सामाजिक अन्तर्विरोधों की जो तस्वीर बनती है, वह बहुत संजीदा तो है ही साथ ही पूरी तरह दोमुँही सोच की असलियत को बेपर्दा करते हुए समाज और जीवन से तआल्लुक़ रखनेवाली हर चीज़ को अपने में शामिल करती चलती है।

‘सूखी रेत’ की कहानियाँ स्त्री–जीवन के उस मरुस्थल को भी प्रतिबिम्बित करती हैं, जो सदियों से विस्तारित होता चला आया है और उसकी तपिश और ख़लिश से वह न तो उकताती है और न ही हार मानती है। नारी का यही अन्तर्विरोध एक प्रतिकार बनने से कैसे, कहाँ चूक जाता है, इसी मसले की दास्ताँ है ‘सूखी रेत’, जहाँ ढेर सारे बहलावे हैं और ख़ूब सारे सपने, जो पूरी तरह मृग–मरीचिका बन जाते हैं। वह हमेशा इत्मीनान करती है कि अब पानी पास ही है, वहाँ तक पहुँचने की जद्दोजहद और फिर प्यासे रह जाने की तड़प। लेकिन जीलानी बानो की कहानियों के नारी–पात्र बार–बार प्यासे रह जाने और अपनी तकमील की तलाश के नाकाम हो जाने को अपनी क़िस्मत नहीं मानते, वे सब न तो छिछला विद्रोह करते हैं और न ही अपनी गरिमा से च्युत होते हैं; बस वे सुलग रहे हैं भीतर ही भीतर। इस रेगिस्तान से निकलने की मुकम्मल राह तलाशते हुए।

एक उल्लेखनीय और महत्त्वपूर्ण कथा-संग्रह।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2001
Edition Year 2001, Ed. 1st
Pages 151p
Translator Surjeet
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
Write Your Own Review
You're reviewing:Sookhi Ret
Your Rating
Zilani Bano

Author: Zilani Bano

जीलानी बानो

जन्म : 1936; बदायूँ (उ.प्र.)।

शिक्षा : एम.ए. (उर्दू)।

इनकी कहानियों और उपन्यासों से आज के समय के बदलते जीवन-मूल्यों और समाज में औरत की हैसियत का एहसास होता है। जीलानी बानो अपनी धरती और दुनिया को ही अपनी कहानियों का मज़मून बनाती हैं।

हैदराबाद की तहज़ीबी ज़िन्दगी पर उनका पहला उर्दू उपन्यास ‘ऐवान ग़ज़ल’ काफ़ी चर्चित हुआ। अब तक हिन्दी और गुजराती में इसका अनुवाद हो चुका है। नेशनल बुक ट्रस्ट की योजना इसे हिन्दुस्तान की चौदह भाषाओं में प्रकाशित करने की है। इनके एक अन्य उपन्यास का नाम है—‘बारिश-ए-संग’। इसका हिन्दी अनुवाद ‘पत्थरों की बारिश’ नाम से छपा। इसके अतिरिक्त नौ कहानी-संग्रह प्रकाशित।

इनकी कई कहानियों का अनुवाद विभिन्न देशी और विदेशी भाषाओं में हो चुका है। इन्होंने रेडियो और टी.वी. के लिए कई नाटक लिखे।

सम्मान : ‘ग़ालिब एवार्ड’ (1978), ‘सोवियत लैंड नेहरू एवार्ड’ (1985), ‘महाराष्ट्र उर्दू एकेडमी एवार्ड’ (1988), ‘हरियाणा उर्दू एकेडमी एवार्ड’ (1989), ‘पाकिस्तान का नुकुश एवार्ड’ (1991)। इनके अतिरिक्त कई अन्य पुरस्कार।

Read More
Books by this Author
Back to Top