Sanatan Dharmakosh Antim Satya-Hard Cover

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ISBN:9789381863213
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9789381863213

पुस्तक के आत्म-निवेदन में डॉ. कृष्ण मोहन प्रसाद सिंह लिखते हैं कि इस धार्मिक पुस्तक में भगवान की तीन महाशक्तियाँ—श्रीराधा, श्रीसीता और श्रीशिवा, चारों वेद, अठारहों पुराण, 108 उपनिषदों, वाल्मीकि एवं स्वामी तुलसीदास कृत रामायण के सात कांडों, गीता के 18 अध्यायों, ओंकार-परमात्मा की ध्वनि, धर्म-परमात्मा की आत्मा, पंच देवता उपासना—पदार्थों एवं जीवों की उत्पत्ति का मूल कारण, महामंत्रों की शक्तियाँ एवं आधुनिक

परिवेश में धर्मशास्त्रों पर आधारित कतिपय मूल प्रश्नों के उत्तर अत्यन्त ही सरल, सूक्ष्म एवं व्यावहारिक रूप से चित्रित किए गए हैं। ब्रह्म सनातन है, परब्रह्म सनातन है। परमात्मा ही धर्म है, और सिर्फ़ वही अन्तिम सत्य है।

‘वृहदाकार सम्पूर्ण धर्मशास्त्रों को समेटकर गूढ़ तत्त्वों को जिज्ञासु पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना बड़ा ही चुनौतीपूर्ण कार्य है। लेकिन यदि आप इसे थोड़ा-बहुत ही आत्मसात् कर सकें तो मेरे लिए बड़े ही सौभाग्य की बात होगी।’

वस्तुतः यह पुस्तक मनुष्य को एक ऐसी दुनिया में ले जाती है जहाँ जिज्ञासा, आस्था, और विश्वास की विचित्र छवियाँ हैं। भौतिकता से आक्रान्त इस युग में यदि कोई अभौतिक सत्य का साक्षात्कार करना चाहता है तो यह पुस्तक उसे प्रकाश प्रदान कर सकती है। तर्क और तर्कातीत के मध्य विचरण करती यह रचना विराट चेतना की ओर पाठक का ध्यान आकृष्ट करती है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2013
Edition Year 2013, Ed. 1st
Pages 332p
Price ₹750.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2.5
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Author: Krishna Mohan Prasad Singh

कृष्ण मोहन प्रसाद सिंह

जन्म : ग्राम—अमावाँ, ज़िला—नालन्दा (भूतपूर्व पटना), बिहार में हुआ। विगत कई वर्षों से कनाडा का नागरिक एवं स्थायी निवासी।

शिक्षा : भारत के शीर्षस्थ कृषि अनुसन्‍धान संस्थान, दिल्ली से ‘प्रसार शिक्षा’ (मूलतः समाज विज्ञान की एक विशेष शाखा) में पीएच.डी.।

भारत, कनाडा, अमेरिका एवं अफ़्रीका जैसे देशों के राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय सरकारी-ग़ैर सरकारी संस्थानों (ख़ासकर 6 वर्ष तक संयुक्त राष्ट्रसंघ के विभिन्न विभागों से जुड़े) में शिक्षण-प्रशिक्षण; प्रशासन एवं प्रबन्धन आदि क्षेत्रों में वर्षों का कार्य-अनुभव।

अध्यापन और स्वतंत्र लेखन।

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