Samsaamyik Hindi Natkon Mein Khandit Vyaktitwa Ankan-Hard Cover

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ISBN:9788171192748
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मनोविज्ञान के परिप्रेक्ष्य में खंडित व्यक्तित्व एक आधुनिक संकल्पना है। आज का मानव टूटा हुआ, थका हुआ, हारा हुआ व्यक्ति है और इसी कारण उसका व्यक्तित्व भी खंडित है। इस विषय पर फुटकर रूप में कुछ विवेचन कतिपय पुस्तकों में अवश्य हुआ है किंतु अपनी समग्रता में खंडित व्यक्तित्व की परिधि में इसके अध्ययन की आवश्यकता बनी हुई थी। डॉ. टी. आर. पाटील की यह पुस्तक ‘समसामयिक हिंदी नाटकों में खंडित व्यक्तित्व अंकन’ इस अभाव की पूर्ति का एक सफल प्रयास है ।
डॉ. पाटील ने अपनी इस महत्त्वपूर्ण पुस्तक में जहाँ खंडित व्यक्तित्व के अर्थबोध और अर्थ-विस्तार के साथ उसकी अवधारणा पर अपने गम्भीर विचार प्रस्तुत किए हैं, वहीं 1947 से 1985 तक प्रकाशित प्रतिनिधि नाटकों को परिलक्षित कर उनमें अंकित खंडित व्यक्तित्व के विविध आयामों को विवेचित-विश्लेषित किया है। इस संदर्भ में उन्होंने प्रेम और यौन समस्या, आत्मविश्लेषणवाद, मानव का असंगत जीवन, राजनीतिक-आर्थिक चेतना, सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना से प्रभावित हिंदी नाटकों में प्रतिबिंबित खंडित व्यक्तित्व को विस्तार के साथ विश्लेषित किया है।
खंडित व्यक्तित्व को रंगमंच पर प्रस्तुत करने की दृष्टि से नाटककारों ने जिस रंगमंच की अभिनव कल्पना की है उसमें मंच-सज्जा, पात्रों के क्रिया-व्यापार, पात्रों का अतर्द्वंद्व, पात्रों की वेश-भूषा, प्रकाश-योजना, ध्वनि-योजना, गीत-संगीत के विशिष्ट प्रयोग, नव्य यांत्रिक साधन तथा विविध रंगकर्मियों और निर्देशकों का योगदान और दर्शकों की प्रतिक्रियाओं को दिखाने का जो सफल प्रयास डॉ. पाटील ने किया है, वह इस पुस्तक की एक अनुपम उपलब्धि है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1996
Edition Year 2023, Ed. 2nd
Pages 332p
Price ₹995.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 3
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Author: Dr. T.R. Pateel

डॉ. टी.आर. पाटिल

डॉ. टी.आर. पाटिल का जन्म 1 अक्तूबर, 1951 को सांगली, महाराष्ट्र में हुआ। उन्होंने शिवाजी विश्वविद्यालय, कोल्हापुर से बी.ए., एम.ए. किया और पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। श्री स्वामी विवेकानन्द शिक्षण संस्थान, कोल्हापुर में व्याख्याता और विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य किया व हिन्दी विभाग, पुणे विश्वविद्यालय में भी अध्यापन किया। उन्होंने हिंदी नाटकों पर अनुसंधानात्मक लेख लिखे। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ प्रकाशित हुईं। 
उन्हें ‘आदर्श शिक्षक सम्मान’ (तासगाँन पंचायत समिति) से पुरस्कृत किया गया।

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