Sahitya Ka Dalit Saundaryashastra

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Sahitya Ka Dalit Saundaryashastra
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मनुवादी व्यवस्था में सदियों से पिसते, शूद्र-अतिशूद्र की श्रेणी में डाले गए लोगों को अभिव्यक्ति का अवसर मिला तो उन्होंने भावपूर्ण रचनाएँ कीं। मध्यकाल के अनेक सन्त कवियों, ख़ासतौर से निर्गुण कवियों ने जात-पाँत के भेदभाव के विरोध में आवाज़ उठाई। जोतिबा फुले ने उन्नीसवीं सदी में दलित समाज को ‘ग़ुलामगीरी’ की पहचान कराई, ‘सत्यशोधक’ बनने का सपना दिया। बाबा साहब आंबेडकर ने बीसवीं सदी में उनमें जागृति की नई चेतना पैदा की और इसी चेतना से पढ़े-लिखे दलित समाज ने अपने दमन-शोषण और उपेक्षा को अपनी रचनाओं के माध्यम से अभिव्यक्त किया।

मराठी आदि भाषाओं से होते हुए नई दलित रचनाशीलता सभी भाषाओं में प्रस्फुटित हुई। इस रचनाशीलता के विकास के लिए जब ख़ुद दलित रचनाकार अपने साहित्य की परख के लिए सौन्दर्यशास्त्र रचने की कोशिश में प्रवृत्त हुए तो लगा कि ज़रूरत सिर्फ़ दलित साहित्य के लिए ही सौन्दर्यशास्त्र रचने की नहीं है बल्कि जो नया नज़रिया जोतिबा फुले और आंबेडकर ने हमारे समाज को दिया है, उससे एक सार्वभौमिक ‘दलित सौन्दर्यशास्त्र’ की वैचारिकी गढ़ी जानी चाहिए।

इस पुस्तक का आधार यही विचार है। इसमें जिस सौन्दर्यशास्त्र को गढ़ने का प्रयास किया गया है, वह सिर्फ़ दलित साहित्य का नहीं, समूचे साहित्य पर लागू होने वाला दलित सौन्दर्यशास्त्र है। 

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 256p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Chanchal Chauhan

Author: Chanchal Chauhan

चंचल चौहान

चंचल चौहान का जन्म एटा, उत्तर प्रदेश के एक गाँव में हुआ। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी और हिन्दी में एम.ए. किया। अंग्रेज़ी के नाटककार आर्नल्ड वैस्कर पर पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में अंग्रेज़ी साहित्य के प्राध्यापक रहे। अब सेवानिवृत्त।

उनकी प्रकाशित रचनाएँ हैं—‘मुक्तिबोध के प्रतीक और बिम्ब’, ‘आलोचना की शुरुआत’, ‘आलोचना यात्रा’, ‘हिन्दी कथा साहित्य : विचार और विमर्श’ (आलोचना); ‘खोलो बन्द झरोखे’ (कविता-संग्रह); ‘समकालीन सौन्दर्यशास्त्र’ (सम्पादन); ‘मार्क्सवाद और साहित्य’ (अनुवाद)। कई पुस्तकों के सहयोगी सम्पादक रहे। ‘प्रालोचन’ पत्रिका का सम्पादन किया। ‘उत्तरगाथा’, ‘नया पथ’ और अंग्रेज़ी पत्रिका ‘Journal of Arts & Ideas’ के सम्पादन से जुड़े रहे।

सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन।

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