Rigved : Mandal-10 Purvardh

Edition: 2016, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Lokbharti Prakashan
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Rigved : Mandal-10 Purvardh
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वेद सनातनविद्या के काव्यात्मक प्रतिपादन हैं। ऋग्वेद संहिता के अनुवाद एवं व्याख्या का प्रयास अनेक भाषाओं में समय-समय पर होता रहा है, किन्तु अभी तक उपलब्ध सभी अनुवादों में काव्यपक्ष की उपेक्षा अथवा पद्यानुवाद की प्रस्तुति के असम्भव प्रयास ही किए गए हैं जो ऋचाओं के साथ पूरा न्याय नहीं करते हैं। वेदों में भावों की सनातनता एक व्यापक ध्वनि के रूप में सूक्तों, संवादों और आख्यानों में विद्यमान है। प्रस्तुत अनुवाद में पादानुसारी किन्तु भावपरक अनुवाद पर विशेष आग्रह सोद्देश्य है ताकि ऋचाओं की काव्यात्मकता का यथासम्भव सम्प्रेषण एवं मूल की अर्थयोजना का क्रम अनुवाद में सुरक्षित रहे।

भाषान्तर में व्याख्या का सूक्ष्म प्रकार अनिवार्य होता है और वही अनुवाद का वर्तमान और अतीत के मध्य संवाद बनाकर बहुत कुछ को परम्परा में जीवित तथा प्रगतिशील रखता है। अतः ग्रन्‍थ में अनुवाद के लिए उपयुक्त भाषा, पुरातन ध्वनि बहुलता और समसामयिक सजीवता के संरक्षण की दृष्टि से तत्सम, तद्भव एवं देशी शब्दों के समन्वित प्रयोग किए गए हैं। साथ ही, गम्‍भीर और बहुमुखी अर्थों को स्पष्ट करने के लिए क्रियापदों के अनुवाद, दुरूह पदों के अर्थनिर्वचन में धातुपाठ, निरुक्त की पद्धति एवं आधुनिक तथा तुलनात्मक व्याकरण के अनुसरण से सहायता ली गई है।

वेद आर्षकाव्य के निर्देशन के साथ-साथ अध्यात्मगवेषियों के मार्गदर्शक भी हैं। अतः ऋचाओं में संश्लिष्ट आधियाज्ञिक, आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक अर्थों को उद्घाटित करने का प्रयास किया गया है। व्याख्याकारों में जहाँ विवाद की स्थिति है, वहाँ प्राचीन एवं नवीन दोनों ही मतों का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इस प्रकार काव्यात्मक पक्ष की प्रस्तुति, निगूढ़ अर्थ के आयामों का विश्लेषण और विवादित स्थलों का तुलनात्मक विवेचन इस ग्रन्थ के अनुवाद एवं व्याख्या की अभीप्सित विशेषताएँ हैं।

इस खंड में ‘ऋग्वेद’ के दसवें मंडल (पूर्वार्द्ध) का व्‍याख्‍या सहित हिन्‍दी अनुवाद प्रस्‍तुत किया गया है। 

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2016
Edition Year 2016, Ed. 1st
Pages 638p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 4
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Govind Chandra Pandey

Author: Govind Chandra Pandey

गोविन्द चन्द्र पाण्डे

जन्म: 30 जुलाई, 1923 ई०, इलाहाबाद देहावसान: 21 मई, 2011 ई०, नई दिल्ली

शिक्षा : सर्वोच्च सम्मान के साथ एम. ए., डी. फिल., शास्त्रीय रीति से संस्कृत का अध्ययन एवं अनेक प्राचीन एवं आधुनिक भाषा का ज्ञान प्रसिद्ध वैदिक विद्वान और प्रकाण्ड पण्डित, प्रो. क्षेत्रेशचन्द्र चट्टोपाध्याय के निर्देशन में शोध कार्य एवं वैदिक अनुशीलन

अध्यापन: इलाहाबाद और गोरखपुर विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग के प्रोफेसर और अध्यक्ष, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर में भारतीय संस्कृति के टैगोर प्रोफेसर एवं इतिहास में विभाग के अध्यक्ष, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में गायकवाड़ पीठ पर विजिटिंग प्रोफेसर

प्रमुख प्रकाशन संस्कृत साहित्य : भक्ति-दर्शनविमर्शः, सौन्दर्य दर्शनविमर्शः एवं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति (चिन्तनपरक ग्रन्थ), न्यायबिन्दु, गाहासतसई का अनुवाद, अस्ताचलीयम्, भागीरथी (काव्य संग्रह),
सम्पूर्ण ऋऋग्वेद का हिन्दी अनुवाद एवं जया व्याख्या सहित। हिन्दी साहित्य : अग्निबीज, क्षण-लक्षण, हंसिका, जया एवं यक्ष प्रश्न (कविता संग्रह)।

इतिहास और संस्कृति : भारतीय परम्परा के मूल स्वर, बौद्धधर्म के विकास का इतिहास; मूल्य मीमांसा, साहित्य, सौन्दर्य और संस्कृति, इतिहास, स्वरूप और सिद्धान्त, शंकराचार्य: विचार और सन्दर्भ; वैदिक संस्कृति; समसामयिक भारतीय संस्कृति आदि। फाउण्डेशन्स ऑफ इण्डियन कल्चर (2 जिल्द), ओरिजिन्स ऑफ बुद्धिज्म, कान्सशनेस वैल्यू कल्चर, डॉन ऑफ इण्डियन सिविलाइजेशन इत्यादि।

सम्मान : फेलो-साहित्य अकादेमी, शंकर पुरस्कार, मंगलाप्रसाद पारितोषिक, मनीषा सम्मान, विज्ञान-दर्शन पुरस्कार, सरस्वती सम्मान, मूर्तिदेवी पुरस्कार, श्रीवाणी अलंकरण, विश्वभारती सम्मान, कबीर सम्मान, पण्डितरत्न, श्रीविद्या अलंकरण, सरस्वती सम्मान, (उ० प्र० शासन), पद्मश्री अलंकरण (2010 ई०) ।

मानद उपाधियाँ : विद्यावारिधि, साहित्यवाचस्पति, वाकपति, महामहोपाध्याय, मानद डी. लिट्, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, चण्डीगढ़, गोरखपुर एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय।

प्रशासनिक पद : कुलपति: राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर एवं इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद। अध्यक्ष : इलाहाबाद संग्रहालय समिति, इलाहाबाद, भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला एवं केन्द्रीय उच्चतर तिब्बती संस्थान, सारनाथ।

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