भारतीय परम्परा में वेद को अनादि अथवा ईश्वरीय माना गया है। इतिहास और संस्कृति के विद्यार्थी के लिए इनमें भारतीय एवं आद्यमानव परम्परा की निधि है। महर्षि यास्क से लेकर सायण तक वेद के पंडितों ने इनके अनेक अर्थ निकाले हैं, जिसके कारण वेदों की सही व्याख्या कठिन है। आधुनिक युग में वेदों पर जो भी प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखे गए हैं, उनमें इतिहास की दृष्टि से व्याख्या भले ही की गई हो, लेकिन आध्यात्मिक और सनातन अर्थ उपेक्षित है।
पुरानी भाषाशास्त्रीय व्याख्या के स्थान पर नई पुरातात्त्विक खोज के द्वारा वेदों का जो इतिहास पक्ष बदला है, उसका मूल्यांकन भी यहाँ किया गया है।
इस ग्रन्थ में न केवल मैक्समूलर आदि को नई व्याख्याएँ एवं सायण आदि की यज्ञपरक व्याख्या पर, बल्कि दयानन्द, श्री अरविन्द, मधुसूदन ओझा आदि की संकेतपरक व्याख्या पर भी विचार किया गया है। वैदिक संस्कृति की परिभाषा करनेवाले ऋत-सत्यात्मक सूत्रों की विवेचना एवं किस प्रकार वे भारतीय सभ्यता के इतिहास में प्रकट हुए हैं, इस पर भी चिन्तन
किया गया है।
वैदिक संस्कृति, धर्म, दर्शन और विज्ञान की अधुनातन-सामग्री के विश्लेषण में आधुनिक पाश्चात्य एवं पारम्परिक दोनों प्रकार की व्याख्याओं की समन्वित समीक्षा इस पुस्तक में की गई है।
इस प्रकार तत्त्व जिज्ञासा और ऐतिहासिक के समन्वयन के द्वारा सर्वांगीणता की उपलब्धि का प्रयास इस ग्रन्थ की विचार शैली का मूलमंत्र और प्रणयन का उद्देश्य है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2001 |
Edition Year | 2024, Ed. 5th |
Pages | 651p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 3 |