Ravindranath Ki Parlok Charcha

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Ravindranath Ki Parlok Charcha

मृत्यु के बाद क्या जीवन का अस्तित्व रह जाता है? आधुनिक विज्ञान यद्यपि इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकता, फिर भी यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि सभ्यता के आदिकाल से मनुष्य इस प्रश्न से निरन्तर जूझता रहा है। भूत-प्रेतमूलक आदिम अन्धविश्वासों से ऊपर उठने पर भी प्राचीन तत्त्वचिन्तक ‘परलोक’ की कल्पना करते हैं और आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। हमारे उपनिषदों ने तो स्पष्ट रूप से आत्मा के अविनश्वर होने की घोषणा कर डाली। ऐसी स्थिति में यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है—‘क्या इन बातों को महज इसलिए उड़ा दिया जाए कि विज्ञान की प्रयोगशाला में इन्हें सिद्ध नहीं किया जा सकता?’

प्रस्तुत पुस्तक में बांग्ला के सुख्यात शब्दशिल्पी अमिताभ चौधरी इसी प्रश्न को रेखांकित करते हुए अनेक रोचक एवं विस्मयकर तथ्यों की जानकारी देते हैं, जिनका विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर के जीवन और साहित्य से सीधा सम्बन्ध है। अपने जीवनकाल में उन्होंने अनेक प्रयोग किये थे और एक विशिष्ट ‘माध्यम’ के द्वारा परलोकगत आत्माओं से ‘बातचीत’ भी की थी। उन विस्तृत वार्तालापों के विवरण लिखित रूप में आज भी शान्तिनिकेतन के ‘रवीन्द्र-सदन’ में सुरक्षित हैं तथा उन्हीं को लेखक ने अत्यन्त प्रामाणिक और कलात्मक ढंग से इस पुस्तक में प्रस्तुत किया है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि मृत्यु के बाद के जीवन के सम्बन्ध में रवीन्द्रनाथ की आशा और आस्था असीम थी, उनके अनेकानेक गीतों और कविताओं में इसी की अभिव्यक्ति हुई है।

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Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed. 1st
Pages 200p
Translator M.N. Bhartibhakta
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 20 X 13 X 1
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Amitabh Chowdhury

Author: Amitabh Chowdhury

अमिताभ चौधरी

बांग्ला भाषा के महत्त्वपूर्ण साहित्यकार अमिताभ चौधरी का जन्म 16 जुलाई, 1928 को सिलहट (अब बांग्लादेश) में हुआ था। विभाजन के बाद उनका परिवार असम की बराक घाटी में आ बसा। उन्होंने कलकत्ता और शान्तनिकेतन में शिक्षा पाई। बाद में शान्तिनिकेतन के विश्वभारती विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। 1956 में पेशेवर तौर पर ‘आनन्द बाजार पत्रिका’ से जुड़े और कुछ समय तक इस अख़बार के समाचार-सम्पादक रहे। फिर ‘युगान्तर’ और ‘आजकल’ अख़बारों के साथ भी जुड़े। अपने पत्रकार जीवन के दौरान इन्दिरा गांधी, शेख मुजीबुर रहमान और सुचित्रा सेन जैसी हस्तियों से उनकी नजदीकी बनी।

उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘महाजन संग’, ‘जोड़ासाँकोर ठाकुर परिवार’, ‘कवि ओ संन्यासी’, ‘भारतीय भाषाय मुस्लिम साहित्य’, ‘इस्लामिक भाषाय मुस्लिम साहित्य’, पीसाहबेर मजार’, ‘दर्शनचिन्ता ओ साहित्य विचार’, ‘विश्वसाहित्ये विंश शताब्दीर कविता’ (प्रथम खंड एवं द्वितीय खंड), ‘निन्निर जन्म’, ‘रवीन्द्र पंचमी’, ‘अमिताभ चौधुरीर श्रेष्ठ कविता’, ‘एकत्रे रवीन्द्रनाथ’ (दो खंड), ‘सूर्यास्ते आगे रवीन्द्रनाथ’, ‘छड़ानो छड़ा’, ‘काठेर तलोयार’, ‘साहित्य आलोचना’, ‘चर्चित चर्वन’, ‘जलछवि’, ‘स्वर्गेर काछाकाछि’, ‘इसलाम ओ रवीन्द्रनाथ’, ‘रवीन्द्रनाथेर परलोकचर्चा’, ‘आमार बन्धु सुचित्रा सेन’, ‘जमींदार रवीन्द्रनाथ’, ‘रवीन्द्रनाथेर असुख-बिसुख’।

उन्हें 1983 में भारत सरकार ने ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया। 2013 में पश्चिम बंगाल सरकार ने उन्हें ‘बंग विभूषण सम्मान’ प्रदान किया और सिलचर विश्वविद्यालय ने मानद उपाधि से सम्मानित किया।

1 मई, 2015 को उनका निधन हुआ। 

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