मृत्यु के बाद क्या जीवन का अस्तित्व रह जाता है? आधुनिक विज्ञान यद्यपि इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकता, फिर भी यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि सभ्यता के आदिकाल से मनुष्य इस प्रश्न से निरन्तर जूझता रहा है। भूत-प्रेतमूलक आदिम अन्धविश्वासों से ऊपर उठने पर भी प्राचीन तत्त्वचिन्तक ‘परलोक’ की कल्पना करते हैं और आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। हमारे उपनिषदों ने तो स्पष्ट रूप से आत्मा के अविनश्वर होने की घोषणा कर डाली। ऐसी स्थिति में यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है—‘क्या इन बातों को महज इसलिए उड़ा दिया जाए कि विज्ञान की प्रयोगशाला में इन्हें सिद्ध नहीं किया जा सकता?’
प्रस्तुत पुस्तक में बांग्ला के सुख्यात शब्दशिल्पी अमिताभ चौधरी इसी प्रश्न को रेखांकित करते हुए अनेक रोचक एवं विस्मयकर तथ्यों की जानकारी देते हैं, जिनका विश्वकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर के जीवन और साहित्य से सीधा सम्बन्ध है। अपने जीवनकाल में उन्होंने अनेक प्रयोग किये थे और एक विशिष्ट ‘माध्यम’ के द्वारा परलोकगत आत्माओं से ‘बातचीत’ भी की थी। उन विस्तृत वार्तालापों के विवरण लिखित रूप में आज भी शान्तिनिकेतन के ‘रवीन्द्र-सदन’ में सुरक्षित हैं तथा उन्हीं को लेखक ने अत्यन्त प्रामाणिक और कलात्मक ढंग से इस पुस्तक में प्रस्तुत किया है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि मृत्यु के बाद के जीवन के सम्बन्ध में रवीन्द्रनाथ की आशा और आस्था असीम थी, उनके अनेकानेक गीतों और कविताओं में इसी की अभिव्यक्ति हुई है।
Language | Hindi |
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Binding | Paper Back |
Publication Year | 2024 |
Edition Year | 2024, Ed. 1st |
Pages | 200p |
Translator | M.N. Bhartibhakta |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 20 X 13 X 1 |