आधुनिक भारतीय रंगमंच के वैचारिक आधार क्या हैं—उसकी अपार विविधता का फलितार्थ क्या है—उसमें आधुनिकता और परम्परा के बीच कैसी बतकही और आवाजाही होती रही है आदि ऐसे प्रश्न हैं जो आधुनिक भारतीय रंगदृष्टि को विन्यस्त करने और उसे समझने के लिए ज़रूरी हैं। हमारी उत्तर-औपनिवेशिक जहनियत की यह विडम्बना है कि ऐसे प्रश्न अक्सर भारतीय भाषाओं में तीखेपन और बेबाकी के साथ उत्सुकता और जिज्ञासा से प्रेरित होकर उठाए ही नहीं गए। इन प्रश्नों को ज़िम्मेदारी और सयानेपन से उठाने की पहल प्रसिद्ध हिन्दी कवि-आलोचक और रंगसमीक्षक नेमिचन्द्र जैन ने की : ऐसा पहली बार हिन्दी में ही नहीं बल्कि सारी भारतीय भाषाओं में भी पहली बार ही हुआ है। 'रंगदर्शन’ उसी का एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ है जो आज भी भारतीय रंगमंच के आधुनिक दौर को समझने-बूझने में एक अनिवार्य उपकरण बना हुआ है।
‘रंगदर्शन’ में जहाँ एक ओर रंगशाला, नाट्य-प्रशिक्षण, दर्शक-वर्ग, व्यावसायिकता आदि का गम्भीरता से विश्लेषण है, वहीं दूसरी ओर उसमें नाटक का अध्ययन, रचना-प्रक्रिया, नाट्य-रूप और भाषा, परम्परा की प्रासंगिकता, रंगदृष्टि की खोज आदि मुद्दे उठाकर भारतीय रंगालोचना को पुष्ट बौद्धिक ऊर्जा और आभा देने की कोशिश है। यह अकारण नहीं है कि हिन्दी के अलावा बांग्ला, मराठी, अंग्रेज़ी आदि में भी इस पुस्तक को दिशादर्शी और महत्त्वपूर्ण माना गया है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 1982 |
Edition Year | 2023 Ed. 9th |
Pages | 215p |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 2 |