Ramayani : Laxman Ji Ki Sat Pariksha

Author: Vijay Chourasia
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Ramayani : Laxman Ji Ki Sat Pariksha

भारत की सबसे विशाल जनजातियों में एक मध्य प्रदेश की गोंड जनजाति जिसने गोंडवाना राज्य के रूप में मध्य भारत के विशाल भूभाग पर अपना राज्य स्थापित किया, ने अपनी गाथात्मक इतिहास चेतना और रूप को सदियों से रामायनी, पंडुवानी और गोंडवानी के रूप में सुरक्षित रखा है। सदियों से परधान गायक गोंड यजमानों को अपने देवताओं और चरित नायकों की यश-गाथा गाकर सुनाते हैं, जो उनकी जीविका भी है। साथ ही उस स्मृति को सुरक्षित रखने और पीढ़ियों में हस्तान्तरित करने की भूमिका भी, जो वाचिकता में कभी रची गई थी। यह वाचिकता में प्रवाहित जातीय स्मृति का गाथा इतिहास है। इस स्मृति से ही गोंड जनजाति की धार्मिक, आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक अस्मिता की पहचान स्थापित होती है।

‘रामायनी : लक्षमन जी की सत परीच्छा’ के इन गीतों के पात्र अवश्य तुलसीकृत रामायण पर आधारित हैं पर शेष सब कुछ आंचलिक है। ‘रामायनी’ नाम से मूल ‘रामायण’ के सम्पूर्ण घटना-प्रसंगों की ज्यों की त्यों अपेक्षा करना उचित नहीं है। यहाँ ‘रामायण’ की मूल कथा को आंचलिक वातावरण के अनुकूल आदिवासी संस्कारों से बद्ध कर एक ऐसा नया रूप दे दिया गया है, जो आधार कथा से भिन्न होते हुए भी विशिष्ट है। उल्लेखनीय यह है कि इसमें लक्ष्मण जी का चरित्र प्रमुख रूप से उभरा है, जिस प्रकार ‘पंडुवानी’ में भीम का। लक्ष्मण जी के चरित्र को विभिन्न प्रसंगों और घटनाओं के माध्यम से उभारा गया है। उनके ‘सत’ की बार-बार प्रशंसा की गई है। वे ही ‘रामायनी’ के आदर्श चरित्र हैं।

प्रस्तुत पुस्तक एक तरफ़ जहाँ मध्य भारत जैसे विस्तृत क्षेत्र के लोकगाथा गीतों का महत्त्वपूर्ण परिचय देती है, वहीं भावी शोधकर्त्ताओं के लिए भी नए आयाम प्रस्तुत करती है।

 

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2008
Edition Year 2008, Ed. 1st
Pages 268p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 2
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Vijay Chourasia

Author: Vijay Chourasia

विजय चौरसिया

जन्म : ग्राम—बंडा, ज़िला—कटनी (मध्य प्रदेश)।

शिक्षा : बीएस.सी., बी.ए.एम.एस., डी.एच.बी.।

उपलब्धियाँ : विगत कई वर्षों से मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ राज्य की लोककलाओं एवं लोकनृत्यों के संरक्षण एवं विकास के लिए प्रयासरत; मध्य प्रदेश तथा देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे—‘कादम्बनी’, ‘धर्मयुग’, ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’, ‘दिनमान’, ‘इंडिया टुडे’, ‘दैनिक भास्कर’, ‘नवभारत’, ‘नई दुनिया’ में एक हज़ार से अधिक लेखों का प्रकाशन; मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में करीब 30 लोकनाट्य एवं लोकनर्तक दलों का नेतृत्व; प्रकृति पुत्र बैगा तथा ‘रामायनी लक्षमन जी की सत परीच्छा’ का मध्य प्रदेश हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, भोपाल द्वारा प्रकाशन; मध्य प्रदेश की प्रसिद्ध जनजाति गोंड में प्रचलित गोंड राजाओं के इतिहास का साक्ष्य बाना गीत पर आधारित ग्रन्थ आख्यान मध्य प्रदेश आदिवासी लोककला अकादमी द्वारा प्रकाशित; मध्य प्रदेश की प्रसिद्ध समाजसेवी संस्था वीर सावरकर लोककला परिषद में निर्देशक; स्वराज संस्थान संचालनालय संस्कृति विभाग, भोपाल द्वारा स्वाधीनता फ़ेलोशिप 2006-07 (‘आदिवासी लोकगीतों में सामाजिक एवं राजनीतिक चेतना’ विषय पर प्रदान की गई); मध्य प्रदेश के लोकनृत्य एवं लोककलाओं का देश-विदेश में प्रदर्शन।

सम्प्रति : चिकित्सा कार्य, पत्रकारिता, लोक-संस्कृति पर लेखन, प्रदेश के लोक-नृत्यों एवं लोक-संस्कृति के संरक्षण हेतु प्रयासरत।

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