Rajendra Yadav-Hard Cover

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मेरे अनन्य आत्मीय और बड़े भाई मनमोहन ठाकौर आज पंद्रह अगस्त को जीवन-मुक्त हो गए। उनके बिना अपने पिछले पैंतालीस वर्षों को सोच पाना असंभव है। मैं जो कुछ हूँ उसका बहुत महत्त्वपूर्ण हिस्सा उन्हीं का बनाया हुआ है। परिवार क्या होता है, यह मैंने मनमोहन ठाकौर और कमला भाभी के माध्यम से ही जाना है। हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती, उर्दू, बंगाली, ब्रज, राजस्थानी में समान अधिकार से लिखने-बोलने वाले ‘ठाकुर साहब’ इतिहास, साहित्य, मार्क्सवाद, ट्रेड यूनियन, विद्यार्थी आंदोलन-सभी से गहराई के साथ जुड़े रहे—भारत का तो शायद ही कोई कोना हो जहाँ वे अनेक बार नहीं गए, महफिलबाज़ और जीवंत साथ घनघोर पढ़ाकू और बुद्धिजीवी एक ऐसा यात्री जो दुनिया भर की भौगोलिक और बौद्धिक यात्राएँ करने के बाद वापस अपने अड्डे पर लौट आता है। कल्पना कर सकना मुश्किल है कि कलकत्ता में उनसे परिचय न हुआ होता तो मेरी जिंदगी क्या होती। मेरा भौतिक और भावनात्मक पता उन्हीं की मार्फ़त था। काश, वे दस-बारह दिन रुक जाते तो अपनी नवीनतम पुस्तक 'राजेन्द्र यादव मार्फत मनमोहन ठाकौर' को भी देख लेते। अब तो इस पुस्तक के अलावा ‘पप्पू’, ‘आवाजें बल्का बस्ती की’, ‘अंतरंग’, ‘एक नास्तिक की तीर्थ यात्रा’, ‘काले पानी का गहराव’ जैसी गद्य-रचनाएँ, ‘सौमित्र संकल्प’ और ‘सेलैक्टेड सौलिलॉकीज़’ जैसी काव्य पुस्तकें ही उनके नाम से जानी जाएँगी।

अजस्र ऊर्जा और उत्साह से भरे रहने वाले ठाकुर साहब अंतिम दो महीनों में बार-बार मृत्यु के हाथों से छूटकर वापस लौट आते थे—मगर अंततः कौन छूटा है उस पकड़ से।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 1999
Edition Year 2024, Ed. 2nd
Pages 192p
Price ₹695.00
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22.5 X 14.5 X 2
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Author: Manmohan Thakore

मनमोहन ठाकौर

मनमोहन ठाकौर का जन्म 23 जुलाई, 1923 को आगरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. किया।

उनकी प्रकाशित रचनाएँ हैं—सौमित्र संकल्प (कविता-संग्रह), एक नास्तिक की तीर्थयात्रा, काले पानी का गहराव (यात्रा-वृतान्त), पप्पू (रांगेय राघव के याराने के पाँच वर्षों का सफरनामा), अंतरंग, आवाजें बल्का बस्ती की (संस्मरण), सेलैक्टेड सौलिलॉकीज़, अलीक मानव (अनुवाद)।

लगभग 250 कविताओं तथा 15 नाटकों का गुजराती, बांग्ला तथा अंग्रेज़ी से अनुवाद किया।

15 अगस्त, 1999 को पूना में उनका निधन हुआ।

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