Raat Din

Author: Vishnu Nagar
Edition: 2008, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Raat Din

विष्णु नागर का यह पाँचवाँ कहानी-संग्रह है ‘रात-दिन’। कविता और व्यंग्य की दुनिया में जितने वह सक्रिय हैं, उतने ही कहानी की दुनिया में भी। उनका यह कहानी-संग्रह इस मायने में दूसरों से बहुत भिन्न है कि इसकी चंदेक कहानियों को छोड़कर लगभग सारी कहानियों-लघुकथाओं का स्वर व्यंग्यात्मक है। वह चाहे ‘प्रेम-कहानियाँ’ हो या ‘पापा मैं ग़रीब बनूँगा’ हो या ‘भगत सिंह बिल्डर्स’ हो या ‘साले तू किसकी इजाज़त से मरा’ है। वह चाहे प्रेम-प्रसंग हो, शैतान के अच्छा आदमी दीखने की कोशिश हो या जीवन-भर भ्रष्टाचार और काहिली के बाद सत्य और न्याय के पथ पर चलने की कोशिश करनेवाले ढोंगी और कायर बूढ़े हों, करियर और पैसे के पीछे भागते लोग हों या साम्प्रदायिक शक्तियाँ हों या गाँव और देश से बनावटी प्रेम करनेवाले लोग हों या महात्मा गांधी के नाम पर तरह-तरह के धन्धे करनेवाले लोग हों—सभी उनकी कहानियों का विषय बनते हैं। यहाँ तक कि सड़क दुर्घटना में मृत व्यक्ति के प्रति शोकाकुल मित्र के प्रेम को भी उन्होंने व्यंग्यात्मक अन्दाज़ में व्यक्त किया है। यह व्यंग्य, व्यंग्य-विनोदवाला नहीं है—यह चुभता है, गड़ता है, परेशान करता है, उत्तेजित करता है, विकल करता है।

हमेशा की तरह दिलचस्प और पठनीय विष्णु नागर के इस संग्रह में ‘भटकनेवाला आदमी’, ‘बेटा और माँ’, ‘बचपन के पहाड़’, ‘दयालु पागल’ जैसी कहानियाँ भी हैं जो एक तरह से कहानी होकर भी कविता हैं और कविता होकर भी कहानी हैं। वे कहानी में कविता और व्यंग्य की ताक़त के साथ आते हैं और कविता में कहानी और व्यंग्य की शक्ति के साथ और उनका व्यंग्य, कविता भी होता है, कहानी भी, निबन्ध भी, राजनीतिक टिप्पणी भी।

बहरहाल यह कहानी-संग्रह आपके हाथों में है और यह परखने का मौक़ा देगा कि जो कहा गया। वह कितना सच है। विश्वास है कि यह सब कुछ आपको सच लगेगा।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 2008
Edition Year 2008, Ed. 1st
Pages 176p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Vishnu Nagar

Author: Vishnu Nagar

विष्णु नागर

विष्णु नागर का जन्म 14 जून, 1950 को हुआ। उनका बचपन और छात्र जीवन शाजापुर, मध्य प्रदेश में बीता। 1971 से दिल्ली में पत्रकारिता शुरु की और तभी से दिल्ली में हैं।

‘नवभारत टाइम्स’, ‘हिन्दुस्तान’, ‘कादंबिनी’, ‘नई दुनिया’, ‘शुक्रवार’ आदि पत्र-पत्रिकाओं से जुड़े रहे। भारतीय प्रेस परिषद एवं महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा की कार्यकारिणी के सदस्य रहे। फिलहाल स्वतंत्र लेखन में सक्रिय हैं।

उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं–‘मैं फिर कहता हूँ चिड़िया’, ‘तालाब में डूबी छह लड़कियाँ’, ‘संसार बदल जाएगा’, ‘बच्चे, पिता और माँ’, ‘कुछ चीज़ें कभी खोई नहीं’, ‘हँसने की तरह रोना’, ‘घर के बाहर घर’, ‘जीवन भी कविता हो सकता है’ तथा ‘कवि ने कहा’ (कविता-संग्रह); ‘आज का दिन’, ‘आदमी की मुश्किल’, ‘कुछ दूर’, ‘ईश्वर की कहानियाँ’, ‘आख्यान’, ‘रात दिन’, ‘बच्चा और गेंद’, ‘पापा मैं ग़रीब बनूँगा’ (कहानी-संग्रह); ‘जीव-जन्तु पुराण’, ‘घोड़ा और घास’, ‘राष्ट्रीय नाक’, ‘देशसेवा का धन्धा’, ‘नई जनता आ चुकी है’, ‘भारत एक बाज़ार है’, ‘ईश्वर भी परेशान है’, ‘छोटा सा ब्रेक’ तथा ‘सदी का सबसे बड़ा ड्रामेबाज’ (व्यंग्य-संग्रह); ‘आदमी स्वर्ग में’ (उपन्यास); ‘कविता के साथ-साथ’ (आलोचना); ‘असहमति में उठा एक हाथ’ (रघुवीर सहाय की जीवनी);

‘हमें देखतीं आँखें’, ‘आज और अभी’, ‘यथार्थ की माया’, ‘आदमी और उसका समाज’, ‘अपने समय के सवाल’, ‘ग़रीब की भाषा’, ‘यथार्थ के सामने’, ‘एक नास्तिक का धार्मिक रोजनामचा’ (लेख और निबन्ध-संग्रह); ‘मेरे साक्षात्कार : विष्णु नागर’ (साक्षात्कार)।

‘सहमत’ संस्था के लिए तीन संकलनों तथा रघुवीर सहाय पर एक पुस्तक का संपादन। परसाई की चुनी हुई रचनाओं का संपादन। नवसाक्षरों एवं किशोरों के लिए भी पुस्तक लेखन।

उन्हें मध्य प्रदेश सरकार के शिखर सम्मान’, हिन्दी अकादमी, दिल्ली के ‘साहित्य सम्मान’, ‘शमशेर सम्मान’, ‘राही मासूम रज़ा साहित्य सम्मान’, ‘व्यंग्य श्री सम्मान’ आदि से सम्मानित किया जा चुका है।

सम्पर्क : vishnunagar1950@gmail.com

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