‘रास्ते’ प्रतिबद्धता के अलग-अलग रंगों और स्तरों के आपसी द्वन्‍द्व की कहानी कहनेवाला नाटक है। विभिन्न विचारधाराओं और वैचारिक निष्ठा के विभिन्न आयामों के कई सारे रास्ते यहाँ, इस नाटक के मंच पर आकर मिलते हैं। संघ बनाम कांग्रेस बनाम साम्यवाद की तीखी, आक्रामक बहसें यहाँ हैं तो सूत्रधार के रूप में तक़रीबन तटस्थ उदारवाद का निर्लिप्त-सा दिखनेवाला दृश्यावलोकन भी है और सशस्त्र क्रान्ति में यक़ीन रखनेवालों की एकरेखीय निर्द्वन्‍द्व प्रतिबद्धता भी है। लेकिन इन सारे रास्तों को एक सीधी प्रकाश-किरण की तरह बींधकर निकल जानेवाली है दुर्गा जिसके लिए अपने वजूद और अपने विचार में भेद करना असम्‍भव है। उसका अपना एक रास्ता है जो विचार और कर्म के इसी अद्वैत से जन्म लेता है। सत्य और सम्‍पूर्ण के लिए उसकी बेचैनी के सम्मुख पहले के उपलब्ध, अत्यन्‍त वाचाल और स्थापित रास्ते सहसा छोटे पड़ जाते हैं, और जब वह अपने अलग रास्ते पर किसी अजानी जगह पर क़ुर्बान हो रही होती है तो वे तमाम रास्ते और उन पर चलनेवाले सब जन दुःख और विस्मय में डूबे सिर्फ़ खड़े रह जाते हैं।

अत्यन्‍त सघन तनाव के साथ अपनी विषय-वस्तु से जूझनेवाले गो.पु. देशपांडे के मूल मराठी नाटक के इस हिन्‍दी अनुवाद की सिर्फ़ रा.ना.वि. रंगमंडल ही दर्जन-भर से ज्‍़यादा प्रस्तुतियाँ दे चुका है। पुस्‍तक रूप में भी एक नए आस्‍वाद को जन्‍म देती अविस्‍मरणीय नाट्य-कृति।

 

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1999
Edition Year 1999, Ed. 1st
Pages 87p
Translator Jyoti Subhash
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
Write Your Own Review
You're reviewing:Raaste
Your Rating
Govind Purushottam Deshpandey

Author: Govind Purushottam Deshpandey

गोविंद पुरुषोत्तम देशपाण्‍डे

जन्म : 2 अगस्त, 1938 को नाना के घर (नासिक) में।

प्रारम्भिक शिक्षा पैतृक निवास रहिमतपुर  (ज़‍िला सतारा) से। परवर्ती शिक्षा क्रमशः बड़ौदा, पुणे और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से।

सम्‍प्रति : जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय अन्‍तरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान में चीनी अध्ययन के प्रोफ़ेसर।

अंग्रेज़ी और मराठी में चीनी मामलों और अन्‍तरराष्ट्रीय समस्याओं पर नियमित लेखन। अंग्रेज़ी में चीन पर दो पुस्तकें भी प्रकाशित।

आप मराठी के सुप्रसिद्ध नाटककार हैं।

अब तक मराठी में इनके पाँच नाटक प्रकाशित हो चुके हैं - ‘उद्ध्वस्त धर्मशाला’, ‘एक वाजून गेला आहे’, ‘मामका : पांडवाश्चैव’, ‘अरसा नवरा सुरेख बाई!’ और ‘अंधार यात्रा’।

‘उद्ध्वस्त धर्मशाला’ हिन्‍दी, बांग्‍ला, कन्नड़ और तमिल में अनूदित हो चुका है। अन्य सभी नाटक भी हिन्‍दी में सुलभ हैं। सभी नाटक रंगमंच पर सफलतापूर्वक अनेक बार मंचित हो चुके हैं।

‘अंधार यात्रा’ को भी देश की प्रमुख नाट्य-मंडलियाँ मराठी और हिन्‍दी में कई प्रतिष्ठित मंचों पर सफलतापूर्वक प्रस्तुत कर चुकी हैं। 

निधन : 16 अक्‍टूबर, 2013

Read More
Books by this Author
Back to Top