‘रास्ते’ प्रतिबद्धता के अलग-अलग रंगों और स्तरों के आपसी द्वन्द्व की कहानी कहनेवाला नाटक है। विभिन्न विचारधाराओं और वैचारिक निष्ठा के विभिन्न आयामों के कई सारे रास्ते यहाँ, इस नाटक के मंच पर आकर मिलते हैं। संघ बनाम कांग्रेस बनाम साम्यवाद की तीखी, आक्रामक बहसें यहाँ हैं तो सूत्रधार के रूप में तक़रीबन तटस्थ उदारवाद का निर्लिप्त-सा दिखनेवाला दृश्यावलोकन भी है और सशस्त्र क्रान्ति में यक़ीन रखनेवालों की एकरेखीय निर्द्वन्द्व प्रतिबद्धता भी है। लेकिन इन सारे रास्तों को एक सीधी प्रकाश-किरण की तरह बींधकर निकल जानेवाली है दुर्गा जिसके लिए अपने वजूद और अपने विचार में भेद करना असम्भव है। उसका अपना एक रास्ता है जो विचार और कर्म के इसी अद्वैत से जन्म लेता है। सत्य और सम्पूर्ण के लिए उसकी बेचैनी के सम्मुख पहले के उपलब्ध, अत्यन्त वाचाल और स्थापित रास्ते सहसा छोटे पड़ जाते हैं, और जब वह अपने अलग रास्ते पर किसी अजानी जगह पर क़ुर्बान हो रही होती है तो वे तमाम रास्ते और उन पर चलनेवाले सब जन दुःख और विस्मय में डूबे सिर्फ़ खड़े रह जाते हैं।
अत्यन्त सघन तनाव के साथ अपनी विषय-वस्तु से जूझनेवाले गो.पु. देशपांडे के मूल मराठी नाटक के इस हिन्दी अनुवाद की सिर्फ़ रा.ना.वि. रंगमंडल ही दर्जन-भर से ज़्यादा प्रस्तुतियाँ दे चुका है। पुस्तक रूप में भी एक नए आस्वाद को जन्म देती अविस्मरणीय नाट्य-कृति।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Translator | Jyoti Subhash |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 1999 |
Edition Year | 1999, Ed. 1st |
Pages | 87p |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14 X 1 |