''आज की परिस्थितियों पर विचार करें तो दो प्रश्न उभरते हैं। सही है कि नई समझ नज़र आती है, परन्‍तु वह सामाजिक या राजनैतिक स्तर के परिवर्तन में फलवती होती नहीं दिखाई पड़ती। बल्कि इसके बावजूद कि कार्यकर्ताओं की संख्या बढ़ गई है, गुट-उपगुट भी बन गए हैं विचारों का लेन-देन बढ़ गया है, साक्षरता में वृद्धि हुई है, फिर भी परिवर्तन को, परिवर्तनवादियों को पीछे हटना पड़ा है। ऐसा क्यों होता है? दूसरा प्रश्न यह कि जो बात सामाजिक परिवर्तन की है, वही राजनैतिक परिवर्तन की भी है। यह कैसे? कल-परसों तक खेत-मज़दूरों और छोटे खेतिहरों का नाम लेनेवाले कार्यकर्ता एकाध बड़े ज़मींदार-जैसे किसानों के पक्ष में रहकर सामाजिक क्रान्ति की बात करने लगे हैं। यह कैसे हुआ? क्या इन प्रश्नों के कुछ उत्तर पाना सम्‍भव है?

इन प्रश्नों के उत्तर देना आज महत्‍त्‍वपूर्ण हो गया है। आज समाजनीति और राजनीति में जितना अँधेरा छा रहा है, उतना पहले कभी नहीं छाया था। मैं दर्शकों को बिला वजह अंधार-यात्रा नहीं करा रहा हूँ। क्या अँधेरे की कुछ खोज की जा सकती है? यह खोज ज्ञानेश्वर के 'लेकर दीवा लगे अँधेरे के पीछे' कथनानुसार व्यर्थ भी साबित हो सकती है। फिर भी प्रयास नहीं छोड़ते बनता, छोड़ना भी नहीं चाहिए। अन्तिम सत्य कभी प्राप्त नहीं होता, परन्तु ज्ञान-प्रक्रिया रोकते नहीं बनती, रोकना काम का भी नहीं है।''

—गोविंद पुरुषोत्तम देशपाण्‍डे

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Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 1999
Edition Year 1999, Ed. 1st
Pages 106p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1
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Govind Purushottam Deshpandey

Author: Govind Purushottam Deshpandey

गोविंद पुरुषोत्तम देशपाण्‍डे

जन्म : 2 अगस्त, 1938 को नाना के घर (नासिक) में।

प्रारम्भिक शिक्षा पैतृक निवास रहिमतपुर  (ज़‍िला सतारा) से। परवर्ती शिक्षा क्रमशः बड़ौदा, पुणे और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से।

सम्‍प्रति : जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय अन्‍तरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान में चीनी अध्ययन के प्रोफ़ेसर।

अंग्रेज़ी और मराठी में चीनी मामलों और अन्‍तरराष्ट्रीय समस्याओं पर नियमित लेखन। अंग्रेज़ी में चीन पर दो पुस्तकें भी प्रकाशित।

आप मराठी के सुप्रसिद्ध नाटककार हैं।

अब तक मराठी में इनके पाँच नाटक प्रकाशित हो चुके हैं - ‘उद्ध्वस्त धर्मशाला’, ‘एक वाजून गेला आहे’, ‘मामका : पांडवाश्चैव’, ‘अरसा नवरा सुरेख बाई!’ और ‘अंधार यात्रा’।

‘उद्ध्वस्त धर्मशाला’ हिन्‍दी, बांग्‍ला, कन्नड़ और तमिल में अनूदित हो चुका है। अन्य सभी नाटक भी हिन्‍दी में सुलभ हैं। सभी नाटक रंगमंच पर सफलतापूर्वक अनेक बार मंचित हो चुके हैं।

‘अंधार यात्रा’ को भी देश की प्रमुख नाट्य-मंडलियाँ मराठी और हिन्‍दी में कई प्रतिष्ठित मंचों पर सफलतापूर्वक प्रस्तुत कर चुकी हैं। 

निधन : 16 अक्‍टूबर, 2013

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