Pratinidhi Shairy : Meeraji

Shayari
Author: Meeraji
Editor: Naresh 'Nadeem'
You Save 20%
Out of stock
Only %1 left
SKU
Pratinidhi Shairy : Meeraji

उर्दू में तरक़्क़ीपसन्द तहरीक (प्रगतिवादी आन्दोलन) के ख़ात्मे से पहले ही उसकी प्रतिक्रियास्वरूप जिस काव्य-सम्प्रदाय ने जड़ें जमाईं, उसे जदीदियत (आधुनिकतावाद) के नाम से जाना जाता है, और कहने की ज़रूरत नहीं कि तरक़्क़ीपसन्द तहरीक दूसरी भारतीय भाषाओं के मुक़ाबिले उर्दू में जितनी मज़बूत थी, उसकी प्रतिक्रिया भी उसी क़दर तीखी हुई। मीराजी को जदीदियत नाम के इसी काव्य-सम्प्रदाय का प्रवर्तक करार दिया जाता है।

सच तो यह है कि यौन-क्रियाओं का रस ले-लेकर बयान, कुंठा, पलायन, मृत्यु का महिमामंडन, समाज के महत्त्व को कम दिखाकर व्यक्ति की सत्ता का ऐलान, पुरातन पन्थ, लुकाच के शब्दों में—‘नाकारा विद्रोह’ और ‘छद्म-विद्रोह’ मोहूम और मोहमिल शायरी, और जनता (जदीदियों की शब्दावली में ‘भीड़’) से नफ़रत वग़ैरह जो-जो विशेषताएँ ‘जदीद’ उर्दू शायरी में मौजूद हैं; वे सभी एक छोटे पैमाने पर मीराजी के जीवन और काव्य में भी देखने को मिलती हैं। अपनी नज़्मों में मीराजी ने जिस जीवन-दृष्टि को प्रस्तुत किया है, वह तरक़्क़ीपसन्द तहरीक के मुक़ाबले, उसके ख़िलाफ़ एक वैकल्पिक जीवन-दृष्टि है; वह दुनिया और दुनिया के मसाइल को देखने का एक ख़ालिस जिंसी नज़रिया है, और वह एक ऐसा नज़रिया है जिसे फ़्रायड के उन सिद्धान्तों से बहुत ही बल प्राप्त होता है जिसे बाद के मनोवैज्ञानिकों ने त्याग दिया था।

सच बात तो यह है कि मीराजी से लेकर बहुत बाद के शायरों तक, हम यही देखते हैं कि हमारा ‘जदीद’ शायद सामाजिक प्रश्नों को उठाता भी है तो उनकी ओर उसकी दृष्टि तभी जाती है जब उसकी यौन-तृप्ति की इच्छा चूर-चूर हो चुकी होती है, उससे पहले नहीं। सामाजिक और वर्गीय भेदों पर मीराजी के क्लर्क की नज़र इसी दु:ख के कारण जाती है, लेकिन इन भेदों का हल उसके नज़दीक सिर्फ़ यही है कि वह भी एक अफ़सर बन जाए। ज़ाहिर है कि ऐसे किसी नज़रिए में बुनियादी सामाजिक परिवर्तन के लिए कोई जगह हो नहीं सकती। लेकिन कब तक? एक वक़्त ऐसा भी आता है कि व्यक्ति ज़ेहनी ऐयाशियों से भी परे भाग जाना चाहता है, और इस स्थिति का गवाह मीराजी से बढ़कर भला और कौन हो सकता है।

More Information
Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2010
Edition Year 2010, Ed. 1st
Pages 211p
Translator Not Selected
Editor Naresh 'Nadeem'
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Pratinidhi Shairy : Meeraji
Your Rating

Editorial Review

It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using 'Content here

Meeraji

Author: Meeraji

मीराजी

नाम : मुहम्मद सनाउल्लाह डार।

जन्म : 25 मई, 1912 ई.।

तख़ल्लुस : पहले ‘साहिरी’, फिर ‘मीराजी’। हज़लिया शायरी में कहीं-कहीं ‘लंधूर’ आया है। कुछ लेख ‘बसन्‍त सहाय’ के नाम से लिखे। कुछ पत्रों में ‘बशीरचन्‍द’ भी आता है। एक पत्र में ‘मीराजी अलमारुफ़ बंदे-हसन’ दिखाई देता है।

शिक्षा व जीवनवृत्ति : मैट्रिक फ़ेल। कुछेक पत्रिकाओं और रेडियो में नौकरी के सिलसिले में देहली और बम्बई भी रहे।

प्रमुख कृतियाँ : ‘मीराजी के गीत’, ‘मीराजी की नज़्में’, ‘पाबन्द नज़्में’, ‘गीत ही गीत’, ‘तीन रंग’ (शायरी); 1988 में उर्दू मरकज़, लन्दन से ‘कुल्लियाते-मीराजी’ प्रकाशित; ‘मशरिक़ो-मग़रिब के नग़्मे’, ‘इस नज़्म में’ (आलोचना); ‘निगारख़ाना’ (दामोदर गुप्त की संस्कृत रचना ‘नटिनीयतम’ का उर्दू अनुवाद); ‘ख़ैमे के आसपास’ (उमर ख़ैयाम की रुबाइयाँ)।

निधन : 3 नवम्बर, 1949, बम्बई।

Read More
Books by this Author

Back to Top