Pratinidhi Shairy : Meeraji

उर्दू में तरक़्क़ीपसन्द तहरीक (प्रगतिवादी आन्दोलन) के ख़ात्मे से पहले ही उसकी प्रतिक्रियास्वरूप जिस काव्य-सम्प्रदाय ने जड़ें जमाईं, उसे जदीदियत (आधुनिकतावाद) के नाम से जाना जाता है, और कहने की ज़रूरत नहीं कि तरक़्क़ीपसन्द तहरीक दूसरी भारतीय भाषाओं के मुक़ाबिले उर्दू में जितनी मज़बूत थी, उसकी प्रतिक्रिया भी उसी क़दर तीखी हुई। मीराजी को जदीदियत नाम के इसी काव्य-सम्प्रदाय का प्रवर्तक करार दिया जाता है।
सच तो यह है कि यौन-क्रियाओं का रस ले-लेकर बयान, कुंठा, पलायन, मृत्यु का महिमामंडन, समाज के महत्त्व को कम दिखाकर व्यक्ति की सत्ता का ऐलान, पुरातन पन्थ, लुकाच के शब्दों में—‘नाकारा विद्रोह’ और ‘छद्म-विद्रोह’ मोहूम और मोहमिल शायरी, और जनता (जदीदियों की शब्दावली में ‘भीड़’) से नफ़रत वग़ैरह जो-जो विशेषताएँ ‘जदीद’ उर्दू शायरी में मौजूद हैं; वे सभी एक छोटे पैमाने पर मीराजी के जीवन और काव्य में भी देखने को मिलती हैं। अपनी नज़्मों में मीराजी ने जिस जीवन-दृष्टि को प्रस्तुत किया है, वह तरक़्क़ीपसन्द तहरीक के मुक़ाबले, उसके ख़िलाफ़ एक वैकल्पिक जीवन-दृष्टि है; वह दुनिया और दुनिया के मसाइल को देखने का एक ख़ालिस जिंसी नज़रिया है, और वह एक ऐसा नज़रिया है जिसे फ़्रायड के उन सिद्धान्तों से बहुत ही बल प्राप्त होता है जिसे बाद के मनोवैज्ञानिकों ने त्याग दिया था।
सच बात तो यह है कि मीराजी से लेकर बहुत बाद के शायरों तक, हम यही देखते हैं कि हमारा ‘जदीद’ शायद सामाजिक प्रश्नों को उठाता भी है तो उनकी ओर उसकी दृष्टि तभी जाती है जब उसकी यौन-तृप्ति की इच्छा चूर-चूर हो चुकी होती है, उससे पहले नहीं। सामाजिक और वर्गीय भेदों पर मीराजी के क्लर्क की नज़र इसी दु:ख के कारण जाती है, लेकिन इन भेदों का हल उसके नज़दीक सिर्फ़ यही है कि वह भी एक अफ़सर बन जाए। ज़ाहिर है कि ऐसे किसी नज़रिए में बुनियादी सामाजिक परिवर्तन के लिए कोई जगह हो नहीं सकती। लेकिन कब तक? एक वक़्त ऐसा भी आता है कि व्यक्ति ज़ेहनी ऐयाशियों से भी परे भाग जाना चाहता है, और इस स्थिति का गवाह मीराजी से बढ़कर भला और कौन हो सकता है।
Language | Hindi |
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Format | Paper Back |
Publication Year | 2010 |
Edition Year | 2010, Ed. 1st |
Pages | 211p |
Translator | Not Selected |
Editor | Naresh 'Nadeem' |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 1.5 |
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