Pratinidhi Kavitayein : Kailash Vajpeyi

Author: Kailash Vajpeyi
Editor: Om Nishchal
Edition: 2024, Ed 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Pratinidhi Kavitayein : Kailash Vajpeyi
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कैलाश वाजपेयी सभ्यता के ध्वंस, मानवीयता के लोप, बंजर होते संवेदन और संताप से झुलसते आँसुओं पर विक्षोभ प्रकट करने वाले, कविता के एक ऐसे नागरिक रहे हैं, जिनकी आवाज़ इतनी वेधक, प्रखर और सत्वग्राही है कि वह अपने अनहद से निष्करुण होती पृथ्वी तक को कँपा दे। कविता का यह तात्त्विक-सात्विक स्वर कैलाश वाजपेयी के पहले संग्रह ‘संक्रान्त’ से लेकर ‘हंस अकेला’ तक में समाया हुआ है। उनका काव्य संसार सामान्य जीवन से लेकर वैश्विक सन्दर्भों और मिथकों की अन्तर्वस्तु से सम्पुष्ट है। वह विश्व वैचारिकी की उनकी विपुल यायावरी से निस्सृत कवि विवेक और जीवन विवेक से संवलित है।

भूमंडलीकरण और बाजारवाद के पसरते प्रभुत्व ने सदियों की हमारी सांस्कृतिक विरासत की चूलें हिला दी हैं। हमारी संवेदना को जड़ बनाते पूँजी के प्रेतों ने जिस तरह हमारे इर्द-गिर्द प्रलोभनों का जाल बिछा दिया है, उसके परिणाम निश्चय ही शुभंकर नहीं हैं। कैलाश वाजपेयी का काव्य-संसार कवि के कारुण्य, विक्षोभ और उसकी कबीरी फटकार की साखी बन गया है। भारतीय समाज, वैश्विक यथार्थ और सभ्यता के ज्वलन्त प्रश्नों से लैस कैलाश वाजपेयी की ये कविताएँ उनके काव्य का एक प्रातिनिधिक चयन हैं।

—ओम निश्चल

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Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2024
Edition Year 2024, Ed 1st
Pages 160p
Translator Not Selected
Editor Om Nishchal
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 17.5 X 12 X 1
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Author: Kailash Vajpeyi

कैलाश वाजपेयी

कैलाश वाजपेयी का जन्म 11 नवम्बर, 1936 को हमीरपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए. किया और पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की। 1960 में बॉम्बे में टाइम्स ऑफ इंडिया समूह की साहि​त्यिक हिन्दी पत्रिका ‘सारिका’ के प्रकाशन प्रभारी के रूप में अपना कैरियर शुरू किया। उसके बाद लम्बे समय तक दिल्ली विश्वविद्यालय के शिवाजी कॉलेज व मोतीलाल नेहरू कॉलेज में अध्यापन करते रहे। 1973 से 1976 तक मैक्सिको के एल कोलेजियो द मेक्सिको में विजिटिंग प्रोफ़ेसर रहे। तदुपरान्त 1976 के मध्य से 1977 के शुरू तक अमेरिका के डैलस विश्वविद्यालय में एडजंक्ट प्रोफ़ेसर के पद पर रहे।

उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं—‘संक्रान्त’, ‘देहान्त से हटकर’, ‘तीसरा अँधेरा’, ‘एल आरबोल दे कार्ने’, ‘बियॉण्ड द सेल्फ़’, ‘महास्वप्न का मध्यान्तर’, ‘सूफ़ीनामा’, ‘भविष्य घट रहा है’, ‘हवा में हस्ताक्षर’, ‘हंस अकेला’ (कविता-संग्रह); ‘पोयट्री टुडे’, ‘विज़ंस एंड मिथ्स’, ‘एन एंथोलॉजी ऑफ़ मॉडर्न हिन्दी पोएट्री’ (भारतीय कविता के सम्पादित-अनूदित संकलन); ‘युवा संन्यासी’ (नाटक); ‘समाज दर्शन और आदमी’, ‘आधुनिकता का उत्तरोत्तर’, ‘शब्द संसार’, ‘अनहद’, ‘है कुछ दीखे और’ (निबन्ध-संग्रह); ‘पृथ्वी का कृष्णपक्ष’, ‘डूबा-सा अनडूबा तारा’ (काव्यात्मक आख्यान); ‘आधुनिक हिन्दी कविता में शिल्प’ (शोध-प्रबन्ध); ‘साइंस ऑफ मंत्राज़’, ‘मंत्राज़ पालाबराज दे पोदेर’ (रहस्य-विज्ञान); ‘एस्ट्रोकाम्बीनेशन्स’ (खगोल-शास्त्र); ‘भीतर भी ईश्वर’, ‘कवि के कथानक’ (आख्यायिकाएँ)।

‘हवा में हस्ताक्षर’ के लिए उन्हें ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’ से पुरस्कृत किया गया। इसके अलावा वे हिन्दी अकादमी (दिल्ली), ‘एस.एस. मिलेनियम अवार्ड’, ‘व्यास सम्मान’ समेत कई सम्मानों से सम्मानित हैं।

1 अप्रैल, 2015 को दिल्ली में उनका निधन हुआ।

ई-मेल : ananya.vajpeyi@gmail.com

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