Pratinidhi Kavitayein : Gyanendrapati

Author: Gyanendrapati
Editor: kumar Mangalam
Edition: 2022, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Pratinidhi Kavitayein : Gyanendrapati
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“ज्ञानेन्द्रपति ने यदि कोई सभ्यता-विमर्श सम्भव किया है तो उसे समकालीन सन्दर्भों में, वैश्वीकरण की चपेट में आ चुके समाज के जीवन का भाष्य जानकर समझा जा सकता है। प्रसाद-निराला-मुक्तिबोध हों या ज्ञानेन्द्रपति, भिन्न-भिन्न सन्दर्भों में ये सभी कवि अपने समाज में वर्चस्व की शक्तियों का चारित्रिक भाष्य ही रचते हैं। ज्ञानेन्द्रपति इतिहास, मिथक या फैंटेसी की जटिल पद्धतियों की तरफ जाने के बजाय ठेठ विवरण की यथार्थवादी पद्धति को अपनाते हैं। वे पर्यवेक्षण को ही सीधे, कविता में बदल देते हैं। उनकी कविता, देखे गए दृश्य की कविता है, यथार्थ का प्रत्यक्ष आख्यान है। ज्ञानेन्द्रपति के प्रेक्षण की एक उल्लेखनीय विशेषता यह है कि वे किसी दृश्य को फोटोग्राफिक प्रेक्षण की तरह निर्विकार या प्रकृति‍वादी तरीके से नहीं, बल्कि उसकी समूची आन्तरिक द्वंद्वात्मकता में पकड़ते हैं। इस प्रयत्न में दृश्य के परस्पर पूरक या विरुद्धार्थी आशयों को अगल-बगल रखकर उनके बीच उत्पन्न विसंगति को उभार देते हैं। यह विसंगति अपने आप में एक काव्यात्मक आशय बन जाती है। इस तरह वे विलोम प्रत्ययों के युग्म से कविता का कथ्य निर्मित करते हैं। ज्ञानेन्द्रपति के लिए विडम्बना का स्रोत भाषा नहीं, जीवन है जिसे वे प्रेक्षण के जरिये जीवन से उठाते हैं, सिर्फ शब्दों के कौतुक से उसे उत्पन्न नहीं करते। उनके यहाँ विडम्बना बिम्ब में प्रत्यक्ष होती है, वक्र कथन में नहीं। वह नई कविता के दौर में लक्षित किए गये ‘शरारतपूर्ण सह-संयोजन’ सरीखा भी नहीं, बल्कि सचेत समाज-प्रेक्षण है।”

—जयप्रकाश, सुपरिचित आलोचक

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Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2022
Edition Year 2022, Ed. 1st
Pages 144p
Translator Not Selected
Editor kumar Mangalam
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 18 X 12 X 1
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Author: Gyanendrapati

ज्ञानेन्‍द्रपति

जन्म : बिहार के झारखंड क्षेत्र के एक गाँव पथरगामा में।

प्रमुख कृतियाँ : कविता-संग्रह—‘आँख हाथ बनते हुए’ (1970), ‘शब्द लिखने के लिए ही यह काग़ज़ बना है’ (1980), ‘गंगातट’ (2000), ‘भिनसार’ (2006), ‘कवि ने कहा’ (2007), ‘मनु को बनाती मनई’ (2013); काव्य-नाटक—‘एकचक्रानगरी’; गद्य—‘पढ़ते-गढ़ते’ (2005)।

सम्‍मान : ‘साहित्‍य अकादेमी पुरस्‍कार’, ‘पहल सम्‍मान’, ‘बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्‍मान’, ‘शमशेर सम्‍मान’।

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