Gangatat

Author: Gyanendrapati
Edition: 1999, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Gangatat

आज के महत्त्वपूर्ण हिन्दी कवियों की पंक्ति में ज्ञानेन्द्रपति का होना कविता की कुछ विरल क़ि‍स्में ईजाद करनेवाले एक ऐसे कवि का होना है जिसे दुनिया की हर वस्तु काव्य-सम्भावना से युक्त लगती है। ज्ञानेन्द्रपति की कविताओं में जनपदीय आभा है, स्थानीयता का गौरव है, आंचलिकता का उजास है तथा जीवन और जगत को मथने-भेदनेवाले समकालीन मुद्दों की अनिवार्य अनुगूँज है। वे अपने पसन्दीदा कवियों के यहाँ जिस जीवन-द्रव्य की मौज़ूदगी की बात करते हैं, उनकी कविताओं में उसकी भरपूर उपस्थिति महसूस की जा सकती है। वस्तुनिष्ठता की शर्तों पर कविता की एकरस रीतिबद्धता से अलग राह बनाते हुए ज्ञानेन्द्रपति ने अपने जीवनावलोकनों से बहुधा मनुष्य को केन्द्र में रखते हुए अनेक चरित्रों, पदार्थों, स्थितियों एवं मानवीय उपस्थितियों में परकाया-प्रवेश किया है।

एक दौर में जहाँ राजनीतिक तेवर वाली कविताएँ ही विशेषकर कवियों की पहचान के लिए रेखांकित की जाती थीं, ज्ञानेन्द्रपति ने कविता को निरे राजनीतिक प्रवाह में बहने न देकर उसे अपनी कवि-प्रतिभा से अपने समय की मानवीय कार्रवाई में बदलने का आह्वान किया। ज्ञानेन्द्रपति के लिए कविता कवि की कथनी नहीं, करनी है। इस सदी की कालांकित और कालजयी-सिद्ध होनेवाली कविता लिख रहे ज्ञानेन्द्रपति वस्तुत: निराला और मुक्तिबोध की सजग कवि-चेतना के प्रातिनिधिक कवि के रूप में उभरे हैं।

ज्ञानेन्द्रपति के कवि की विशिष्टता इस बात तक सीमित नहीं है कि उन्होंने वस्तुनिष्ठता के साथ अपने समय के अनुभवों को कविता में साधा-सिरजा और बहुवस्तुस्पर्शी बनाया है, बल्कि इसलिए भी है कि किसी अलौकिक या धार्मिक सत्ता पर आस्तिकता/आस्था का कंधा टिकाए बग़ैर भारतीय जीवन-संस्कृति के मूलाधारों को कवितालोकित कर उन्होंने हमारे इस विश्वास को ही पुख़्ता किया है कि भारतीयता से छिन्नमूल होकर एक भारतीय कवि का अपना रचनाधार जैसे-तैसे भले ही बन जाए, किन्तु उसका जनाधार व्यापक नहीं हो सकता। इस संक्रान्ति-वेला में अपने समय-समाज की चिन्हारी के लिए ही नहीं, बल्कि उद्वेलित करनेवाले उरा आनन्द के लिए भी, जो भाषिक सृजनात्मकता के बल पर कविता के ही दिए-किए सम्भव है, इस संकलन की कविताएँ हिन्दीभाषी जनता द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी पढ़ी जाएँगी।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Publication Year 1999
Edition Year 1999, Ed. 1st
Pages 159p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14.5 X 1.5
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Gyanendrapati

Author: Gyanendrapati

ज्ञानेन्‍द्रपति

जन्म : बिहार के झारखंड क्षेत्र के एक गाँव पथरगामा में।

प्रमुख कृतियाँ : कविता-संग्रह—‘आँख हाथ बनते हुए’ (1970), ‘शब्द लिखने के लिए ही यह काग़ज़ बना है’ (1980), ‘गंगातट’ (2000), ‘भिनसार’ (2006), ‘कवि ने कहा’ (2007), ‘मनु को बनाती मनई’ (2013); काव्य-नाटक—‘एकचक्रानगरी’; गद्य—‘पढ़ते-गढ़ते’ (2005)।

सम्‍मान : ‘साहित्‍य अकादेमी पुरस्‍कार’, ‘पहल सम्‍मान’, ‘बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्‍मान’, ‘शमशेर सम्‍मान’।

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