Pratinidhi Kahaniyan : Yaikam Mohmmad Bashir

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Pratinidhi Kahaniyan : Yaikam Mohmmad Bashir

केरल के निम्न-मध्यवर्गीय समाज और मुस्लिम आबादी को गझिन पृष्ठभूमि से कथानक लेकर उन्हें जादुई कलात्मकता से कहानियों में प्रस्तुत करनेवाले वाइकम मुहम्मद बशीर भारतीय तथा साहित्य में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं।

इस्लामिक सामाजिक परिवेश, इस्लाम के पौराणिक मिथकों और केरल के मुस्लिमों में प्रचलित भाषा रूपों का प्रयोग उनके कथा-जगत को एक अलग पहचान देता है। मलयाली ही नहीं, अन्य भाषाओं में भी इस कोटि का बहुत कुछ नहीं मिलता।

इस संग्रह में उनकी पन्द्रह अद्भुत कहानियाँ संकलित हैं जो समाज के हाशिए पर रहनेवाले ग़रीब लेकिन जीवट और मनुष्यता से लवरेज लोगों का चित्रण करती हैं। पहली ही कहानी ‘जुआरी की बेटी’ कथाकार की मनोवैज्ञानिक और समाजशास्त्रीय समझ का एक आकर्षक नमूना है।

बशीर स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय रहे थे। उस दौरान उनके कुछ अनुभव संग्रह में शामिल ‘माँ’, ‘हथकड़ी’ और ‘पुलिसवाले की बेटी’ आदि कहानियों में देखने को मिलते हैं। उनके कथासंसार में सिर्फ़ मनुष्य ही नहीं, बल्कि  संसार की सभी चर-अचर वस्तुएँ जैसे चैतन्य होकर गति करती है।

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Edition Year 1984
Pages 278p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Author: Yaikam Mohmmad Bashir

वइकम मुहम्मद बशीर

मलयालम के प्रसिद्ध लेखक वाइकम मुहम्‍मद बशीर का जन्‍म 21 जनवरी, 1908 को, वाइकम, केरल में हुआ। उन्‍होंने पहले मलयालम, फिर अंग्रेज़ी माध्‍यम के स्कूल से अपनी शिक्षा की शुरुआत की। वे जब स्कूल में थे तभी महात्मा गांधी के प्रभाव में आ गए और स्वदेशी आदर्शों से प्रेरित होकर उन्होंने खद्दर पहनना शुरू कर दिया। एक दिन उन्‍होंने विद्यालय छोड़ दिया और पूरी तरह से स्वतंत्रता आन्‍दोलन में शामिल हो गए।

साहित्‍य में महत्‍त्‍वपूर्ण योगदान के लिए बशीर जी को 'साहित्‍य अकादेमी फ़ेलोशिप', 'केरल साहित्‍य अकादमी फ़ेलोशिप', 'केरल साहित्‍य अकादमी पुरस्‍कार', 'पद्मश्री', 'केरल स्‍टेट फ़‍िल्‍म पुरस्‍कार' आदि से सम्‍मानित किया गया। ‘अनर्थ निमिष’, ‘जन्मदिन’, ‘मूर्खों का स्वर्ग’, ‘मेरे दादा का हाथी’ आदि उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं।

उनका निधन 5 जुलाई, 1994 को कोज़ीकोड, केरल में हुआ।

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