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Pracheen Bharat Ki Sanskriti Aur Sabhyata-Paper Back

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प्राचीन भारतीय संस्कृति और सभ्यता के वैज्ञानिक व्याख्याकार दामोदर धर्मानंद कोसंबी का नाम इतिहास के विद्यार्थियों के लिए सुपरिचित है। प्रो. कोसंबी पेशे से गणितज्ञ थे और लम्बे अरसे तक बम्‍बई के 'टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़ंडामेंटल रिसर्च' में गणित के प्रोफ़ेसर रहे। इतिहास में कई ग्रन्थों का प्रणयन करने के साथ-साथ उन्होंने समाजशास्त्र, नृतत्‍त्‍व विज्ञान और संस्कृत साहित्य को लेकर अनेक शोधपत्र लिखे हैं।

प्रस्तुत पुस्तक प्राचीन भारत की संस्कृति और सभ्यता को वैज्ञानिक विकास के परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित-विश्लेषित करने का महत्त्वपूर्ण प्रयास है। उत्पादन के साधनों में परिवर्तन किस प्रकार हमारे सांस्कृतिक विकास को प्रभावित करता है, इसका सुसंगत विवेचन इस पुस्तक में किया गया है। इतिहास के कुछ जटिल प्रश्नों को समझने-समझाने का प्रयास भी यहाँ दिखाई पड़ता है। उन अनेक प्रश्नों में कुछ प्रश्न हैं : क्या अन्न-संकलन और पशु-चारण की अवस्था से गुज़रते हुए कृषि-युग तक आकर नए धर्म की आवश्यकता अनुभव की गई थी? सिन्धु घाटी की सभ्यता के दौरान विकसित नगरों का विनाश कैसे हुआ? क्या आर्य नाम की कोई जाति थी और अगर थी तो वे कौन लोग थे? क्या किसी काल में वर्ण-व्यवस्था की भारतीय समाज में कोई सार्थक भूमिका थी?

लन्दन के 'टाइम्स लिटरेरी सप्लीमेंट' ने इस पुस्तक की समीक्षा करते हुए इसे 'ज्वलन्त रूप से मौलिक कार्य' तथा 'भारत का पहला सांस्कृतिक इतिहास' बताया था।

इस पुस्तक के रूप में प्रो. कोसंबी ने भारत के प्राचीन इतिहास को न केवल प्रेरक बल्कि सुबोध भी बना दिया है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 1990
Edition Year 2024, Ed. 16th
Pages 344P
Price ₹275.00
Publisher Rajkamal Prakashan - Akshar
Dimensions 22 X 14 X 3.5
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Damodar Dharmanand Kosambi

Author: Damodar Dharmanand Kosambi

दामोदर धर्मानंद कोसंबी

प्रोफ़ेसर दामोदर धर्मानंद कोसंबी का जन्म 31 जुलाई, 1907 को गोवा में हुआ था। उनके पिता धर्मानंद कोसंबी बौद्ध दर्शन के विश्रुत विद्वान थे, जिन्हें हार्वर्ड (संयुक्त राज्य अमरीका) में प्राध्यापन के लिए आमंत्रित किया गया था। दामोदर केवल ग्यारह वर्ष की अवस्था में पिता के साथ हार्वर्ड गए और वहाँ कैम्ब्रिज लैटिन स्कूल में दाख़‍िल हुए। बाद में उन्होंने हार्वर्ड से गणित, इतिहास और भाषाओं में बहुत ऊँचे अंकों से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

भारत लौटकर प्रो. कोसंबी ने कुछ वर्ष तक बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में और फिर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में प्राध्यापन किया। सन् 1932 में वे गणित के प्रोफेसर के रूप में फ़र्ग्युसन कॉलेज, पुणे में नियुक्त हुए जहाँ उन्होंने चौदह वर्ष तक कार्य किया। अपने इस कार्यकाल को वे हँसी में ‘राम का वनवास’ कहा करते थे। इस वनवास के दौरान ही प्रो. कोसंबी ने ज्ञान के विविध क्षेत्रों पर अधिकार प्राप्त करने का अनथक संघर्ष किया और एक विचारक तथा विद्वान के रूप में अपनी महानता की आधारशिला रखी।

प्रोफ़ेसर कोसंबी ने 1946 में बम्‍बई स्थित टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़ंडामेंटल रिसर्च में गणित का अध्यक्ष-पद स्वीकार किया और सोलह वर्ष यहाँ रहे। इस दौरान प्रो. कोसंबी ने न सिर्फ़ अपनी पहले की गवेषणाओं को अन्तिम रूप दिया बल्कि जीव-विज्ञान, नृजाति-विज्ञान, पुरातत्‍त्‍व और प्राक्-इतिहास के क्षेत्र में अनुसन्धान के नए द्वार खोले।

प्रो. कोसंबी मानव-समाज और उसमें होनेवाले परिवर्तनों को मार्क्सवादी दृष्टि से व्याख्यायित करने में विश्वास करते थे, लेकिन ख़ुद मार्क्स के तर्कों को आधुनिक अनुसन्धानों के आधार पर संशोधित करने से वे चूके नहीं। 20 जून, 1966 को प्रो. कोसंबी का असामयिक निधन हो गया।

प्रकाशित प्रमुख कृतियाँ : ‘एन इंट्रोडक्शन टू द स्टडी ऑफ़ इंडियन हिस्ट्री’ (1956); ‘एक्ज़ासपेरेटिंग एस्सेज़ : एक्सरसाइज़ इन द डाइलैक्टिकल मैथड’ (1957); ‘मिथ एंड रियलिटी’ (1962); ‘द कल्चर एंड सिविलिजेशन ऑफ़ एंशिएंट इंडिया इन हिस्टॉरिकल आउटलाइन’ (1965)। इसके अतिरिक्त पाँच पुस्तकों का सम्पादन किया और 127 शोध-लेख लिखे।

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