Prabandhan Ki Pathshala

As low as ₹76.00 Regular Price ₹95.00
You Save 20%
In stock
Only %1 left
SKU
Prabandhan Ki Pathshala
- +

प्रेम से सफलता और सफलता का सम्पन्नता से बहुत गहरा रिश्ता है। प्रेम-भाव के बिना सम्पन्नता और सफलता भी मूल्यहीन हैं। जो प्रबन्धक अपने साथियों-सहकर्मियों को प्रेमपूर्वक साथ लेकर चलते हैं, वे कभी असफल नहीं होते।

‘प्रबन्ध की पाठशाला’ शीर्षक यह पुस्तक हमें कुछ ऐसे ही पाठ पढ़ाती है, जो देखने में ऐसे लगते हैं कि उनका न व्यवसाय से कोई सम्बन्ध है और न उद्यम-उद्योग से, लेकिन वास्तव में उनके बिना आप एक छोटी-सी दुकान भी सफलतापूर्वक नहीं चला सकते।

पुस्तक के लेखक को स्वयं प्रबन्धन के क्षेत्र का लम्बा अनुभव रहा है, उन्होंने स्वयं यह देखा है कि वे मानवीय मूल्य, जो परिवार से लेकर समाज तक हर संस्था की आधारशिला साबित होते हैं, व्यावसायिक सफलता भी उन पर बहुत दूर तक निर्भर करती है।

जीवन के दु:ख, कष्ट, तकलीफ़ें यहाँ अपनी कार्यकुशलता को वैसे ही बढ़ाती हैं, जैसे जीवन के किसी अन्य क्षेत्र में। इसी तरह नई चीज़ों के प्रति जिज्ञासा, मन को ताक़त देनेवाली आस्था, परिवर्तनशीलता, अनासक्ति, ईर्ष्या और वैमनस्य से सायास परहेज़, जीवन की अनिश्चितता के प्रति सजगता, उपकार के प्रति ग्रहणशीलता और परोपकार के प्रति तत्परता आदि ये सभी बीज-मंत्र हैं, जिनसे हम न सिर्फ़ अपने प्रबन्धन-कौशल को नई आभा दे सकते हैं, बल्कि अपने आसपास सभी को सकारात्मक माहौल भी मुहैया करा सकते हैं।

More Information
Language Hindi
Format Paper Back
Publication Year 2013
Edition Year 2013, Ed. 1st
Pages 108p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 0.5
Write Your Own Review
You're reviewing:Prabandhan Ki Pathshala
Your Rating

Editorial Review

It is a long established fact that a reader will be distracted by the readable content of a page when looking at its layout. The point of using Lorem Ipsum is that it has a more-or-less normal distribution of letters, as opposed to using 'Content here

Vijay Joshi

Author: Vijay Joshi

विजय जोशी

जन्‍म : 15 मार्च, 1948

पूर्व ग्रुप महाप्रबन्धक, बी.एच.ई.एल., विजय जोशी न केवल प्रबन्धन के क्षेत्र में जाना-पहचाना नाम हैं, बल्कि साहित्य के क्षेत्र में भी उनके कविता-संग्रह ‘भला लगता है’ (भूमिका : श्री गुलज़ार) के तीन संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। ‘मैनेजमेंट सीखें महात्‍मा से’, ‘मैनेजमेंट मंत्र’, ‘प्रबन्‍धन में 5 का मंत्र’, ‘प्रबन्‍धन की पाठशाला’, ‘प्रबन्‍धन के सुर : गांधी के गुर’, ‘सफल प्रबन्‍धन : गांधी दर्शन’, ‘प्रबन्‍धन के पाँच सूत्र’ आदि प्रबन्‍धन से जुड़ी उनकी उल्‍लेखनीय कृतियाँ हैं।

सम्‍मान : फ़ेलोशिप, इंस्‍टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स (इंडिया) एवं इंस्टीट्यूशन ऑफ़ प्‍लांट इंजीनियर्स।

सम्प्रति : कौंसिल मेम्बर, इंस्टीट्यूशन ऑफ़ इंजीनियर्स (इंडिया)

ई-मेल : v.joshi415@rediffmail.com

Read More
Books by this Author

Back to Top