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Panchjanya

Translator: Devraj
Edition: 2024, Ed. 2nd
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Panchjanya

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श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र-युद्ध के पूर्व कहा था—“यदा-यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।”

वही श्रीकृष्ण जब उस काल में जन्मे थे और एक प्रकार से कुरुक्षेत्र-युद्ध के मुख्य नायक थे, तो मानना होगा कि धर्म की ग्लानि और अधर्म का बढ़ाव बहुत अधिक हुआ था। पृथ्वी भर के मनुष्य अत्याचार, अन्याय, दुख, कष्ट से बेचैन हो उठे थे। राज-शक्ति तथा क्षात्र-शक्ति पर लोभ, ईर्ष्या, द्वेष, हिंसा, शून्यगर्भी अहंकार और आत्मनाशा बुद्धि छा गई थी। उसकी मति विभ्रान्त हो गई थी।

तब क्या श्रीकृष्ण ने भारत को, पंक-शैया से उठाना और नित्य अवमानना से उसका उद्धार करना चाहा था?

संभोगमत्त, मदगर्वित, निर्बोध-विकृत क्षात्र-शक्ति के हाथ से शासन छीनकर सद्बुद्धियुक्त सत्पुरुषों के हाथ में देश का दायित्व देना चाहा था?

दरिद्र, पीड़ित, मूढ़, मूक, साधारण मनुष्यों की संघ-शक्ति को ही शासन-शक्ति में रूपान्तरित करना चाहा था?

क्या इसी कारण उनके विख्यात घोषक-शंख को कोई अन्य नाम न देकर, उसका नाम पाञ्चजन्य रखा गया?

क्या उन्होंने इसीलिए राजसूय यज्ञ में साधारण-जन के पाद-प्रक्षालन का भार ग्रहण किया था?

‘पाञ्चजन्य’ ग्रन्थ की महाभारत-कथा में लेखक ने इन्हीं प्रश्नों का उत्तर खोजा है।

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Devraj
Editor Not Selected
Publication Year 2003
Edition Year 2024, Ed. 2nd
Pages 443p
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 3
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Gajendra Kumar Mitra

Author: Gajendra Kumar Mitra

गजेन्द्र कुमार मित्र

रवीन्द्र-शरदोत्तर बांग्ला साहित्य में विभूतिभूषण, ताराशंकर के पश्चात् जिन कथाकारों ने बंगाली मध्यवर्गीय समाज को उपजीव्य बनाकर सार्थक साहित्य-सृजन किया, उनमें गजेन्द्र कुमार मित्र का अन्यतम एवं श्रेष्ठ स्थान है।

गजेन्द्र कुमार मित्र का जन्म 11 नवम्बर, 1908 को कोलकाता में हुआ। काशी के ऐंग्लो-बंगाली स्कूल में बाल्य-शिक्षा प्रारम्भ हुई। कोलकाता लौटकर उन्होंने ढाकुरिया इलाक़े में रहना प्रारम्भ किया तथा बालीगंज जगद्बन्धु इंस्टीट्यूशन में भर्ती हो गए। स्कूली जीवन के पश्चात् उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज में प्रवेश लिया। स्कूल की शिक्षा पूर्ण होने के कुछ दिनों बाद ही उन्होंने सुमथनाथ के साथ सामयिक रूप से पत्रिका प्रकाशित की। सन् 1949 में मित्रों के साथ मिलकर उन्‍होंने ‘कथा-साहित्य’ मासिक प्रारम्भ किया।

गजेन्द्र कुमार मित्र का प्रथम प्रकाशित उपन्यास था—‘मने छिलो आशा’ और कहानी-संग्रह ‘स्त्रिमाश्चरित्रम्’। सन् 1959 में उनका उपन्यास ‘कलकातार काछेइ’ ‘साहित्‍य अकादेमी पुरस्कार’ से सम्मानित हुआ। ‘कलकातार काछेइ’, ‘उपकंठे’, ‘पौष-फागुनेर पाला’—यह त्रयी आधुनिक बांग्ला-साहित्य में मील का पत्थर मानी जाती है। ‘पौष-फागुनेर पाला’ को 1964 में ‘रवीन्द्र पुरस्कार’ मिला।

गजेन्द्र कुमार मित्र की लेखनी का विचरण-क्षेत्र विराट् और व्यापक है। सामाजिक उपन्यास, पौराणिक उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास, कहानी, किशोर साहित्य—सर्वत्र उनकी अबाध गति रही।

निधन : 1 जनवरी, 1994

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