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Gajendra Kumar Mitra

Gajendra Kumar Mitra

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गजेन्द्र कुमार मित्र

रवीन्द्र-शरदोत्तर बांग्ला साहित्य में विभूतिभूषण, ताराशंकर के पश्चात् जिन कथाकारों ने बंगाली मध्यवर्गीय समाज को उपजीव्य बनाकर सार्थक साहित्य-सृजन किया, उनमें गजेन्द्र कुमार मित्र का अन्यतम एवं श्रेष्ठ स्थान है।

गजेन्द्र कुमार मित्र का जन्म 11 नवम्बर, 1908 को कोलकाता में हुआ। काशी के ऐंग्लो-बंगाली स्कूल में बाल्य-शिक्षा प्रारम्भ हुई। कोलकाता लौटकर उन्होंने ढाकुरिया इलाक़े में रहना प्रारम्भ किया तथा बालीगंज जगद्बन्धु इंस्टीट्यूशन में भर्ती हो गए। स्कूली जीवन के पश्चात् उन्होंने सेंट जेवियर्स कॉलेज में प्रवेश लिया। स्कूल की शिक्षा पूर्ण होने के कुछ दिनों बाद ही उन्होंने सुमथनाथ के साथ सामयिक रूप से पत्रिका प्रकाशित की। सन् 1949 में मित्रों के साथ मिलकर उन्‍होंने ‘कथा-साहित्य’ मासिक प्रारम्भ किया।

गजेन्द्र कुमार मित्र का प्रथम प्रकाशित उपन्यास था—‘मने छिलो आशा’ और कहानी-संग्रह ‘स्त्रिमाश्चरित्रम्’। सन् 1959 में उनका उपन्यास ‘कलकातार काछेइ’ ‘साहित्‍य अकादेमी पुरस्कार’ से सम्मानित हुआ। ‘कलकातार काछेइ’, ‘उपकंठे’, ‘पौष-फागुनेर पाला’—यह त्रयी आधुनिक बांग्ला-साहित्य में मील का पत्थर मानी जाती है। ‘पौष-फागुनेर पाला’ को 1964 में ‘रवीन्द्र पुरस्कार’ मिला।

गजेन्द्र कुमार मित्र की लेखनी का विचरण-क्षेत्र विराट् और व्यापक है। सामाजिक उपन्यास, पौराणिक उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास, कहानी, किशोर साहित्य—सर्वत्र उनकी अबाध गति रही।

निधन : 1 जनवरी, 1994

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