‘न्यायपालिका कसौटी पर’ अंग्रेज़ी में छपी लेखिका की पहली पुस्तक ‘ज्यूडिशियरी ऑन ट्रायल’ का हिन्दी अनुवाद है। यह पुस्तक ‘क्रिमिनल ज्यूडिशियल सिस्टम’ की ढहती दीवारों को लेकर चिन्तित आम और ख़ास सभी लोगों का द्वार खटखटाती है।
जेलों में क़ैदियों का जीवन कठिन होता जा रहा है। यह सच वकीलों एवं मुवक्किलों के लिए प्रायः चिन्ता का विषय रहा है। न्यायालयों ने भी यदा-कदा इस विषय पर अपनी चिन्ता ज़ाहिर की है। जेल का उद्देश्य क़ैदी में इस क़दर ‘सुधार’ ला देना है कि वह सज़ा के बाद एक सामान्य नागरिक का जीवन जी सके। पर यह दुर्भाग्य ही है कि सारी चेष्टाओं के बावजूद क़ैदियों का जीवन बद से बदतर होता जा रहा है। यही वह जगह है जहाँ निर्दोष एवं कठोर अपराधी एक-दूसरे से रूबरू होते हैं। यही वजह है कि जेलों में नियम एवं मानवीय अधिकारों का पालन और भी ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है।
पेशे से वकील कमलेश जैन ने जेल के बारे में गम्भीरता से सोचा है। वे मानती हैं कि क़ैदी भी उसी ईश्वर की सन्तान हैं जिसने हम सबको बनाया। उन्होंने क़ैदियों के नज़रिये से सारे ‘क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम’ को परखा है और इसके चतुर्दिक ह्रास को रेखांकित करते हुए कुछ सुझाव भी दिए हैं। ‘न्यायपालिका कसौटी पर’ उन क़ैदियों के लिए है जो ऐसी परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं जहाँ ‘सुधार’ अनुपस्थित है, सिर्फ़ दमन ही दमन है। यह पुस्तक उन लोगों के लिए भी है जिनकी मानवीय अधिकारों और मानवीय न्याय में गहरी दिलचस्पी है
Language | Hindi |
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Binding | Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2023 |
Edition Year | 2023, Ed. 1st |
Pages | 152p |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 1 |