‘नौकर की कमीज़’ भारतीय जीवन के यथार्थ और आदमी की कशमकश को प्रस्तुत करनेवाला उपन्यास है। इस उपन्यास की सबसे बड़े ख़ासियत यह है कि इसके पात्र मायावी नहीं बल्कि दुनियावी हैं, जिनमें कल्पना और यथार्थ के स्वर एक साथ पिरोए हुए हैं। कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि किसी पात्र को अनावश्यक रूप से महत्त्व दिया गया हो। हर पैरे और हर पात्र की अपनी महत्ता है।
केन्द्रीय पात्र संतू बाबू एक ऐसा दुनियावी पात्र है जो घटनाओं को रचता नहीं, बल्कि उनसे जूझने के लिए विवश, है और साथ ही इस सोसाइटी के हाथों इस्तेमाल होने के लिए भी। आज की ‘ब्यूरोक्रेसी’ और अहसानफ़रामोश लोगों पर यह उपन्यास सीधा प्रहार ही नहीं करता, बल्कि छोटे-छोटे वाक्यों के सहारे व्यंग्यात्मक शैली में एक माहौल भी तैयार करता चलता है।
विनोद कुमार शुक्ल की सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति का ही कमाल है कि पूरे उपन्यास को पढ़ने के बाद ज़िन्दगी के अनगिनत मार्मिक तथ्य दिमाग़ में तारीख़वार दर्ज होते चले जाते हैं। उनके छोटे-छोटे वाक्यों में अनुभव और यथार्थ का पैनापन है, जिसकी मारक शक्ति केवल मिलमिलाहट ही पैदा नहीं करती बल्कि बहुत अन्दर तक भेदती चली जाती है।
Language | Hindi |
---|---|
Binding | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 1994 |
Edition Year | 2023, Ed 10th |
Pages | 248p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 21 X 14 X 1.5 |