Narak Le Janewali Lift

Fiction : Stories
Author: Rajendra Yadav
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Narak Le Janewali Lift
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मेरे लिए अनुवाद दो भाषाओं की क्षमता, सम्भावना और शब्द-शक्तियों को खँगालने और सही अर्थ या मन्तव्य पकड़ सकने की चुनौती के रूप में आता है। यहाँ दोनों भाषाओं की अपनी बनावट ही नहीं, भौगोलिक स्थितियों और संस्कृतियों के साथ अलग समयों की यात्रा भी करनी पड़ती है। सौ-दो सौ या हज़ार साल पहले के समाज-समय को आज के मिज़ाज में ढालना सिर्फ़ शब्दार्थ देना ही नहीं है। इस प्रयास में प्रायः नाश अपनी भाषा का ही होता है। हमारे दिमाग़ पर मूल पाठ इतना हावी होता है कि अपनी भाषा-प्रकृति की तरफ़ ध्यान ही नहीं दे पाते।

अनुवाद में मैं पहली जवाबदेही अपनी भाषा के प्रति मानता हूँ। वह मूल के प्रति ईमानदार होने के साथ अधिक से अधिक सहज, सम्प्रेषणीय और प्रवाहपूर्ण होनी चाहिए। इसके लिए ज़रूरी है कि या तो आप स्वयं मूलपाठ से मुक्त होकर अनुवाद का संशोधन करें या दूसरे ऐसे व्यक्ति से मदद लें जो मूल से आक्रान्त न हो।

इन कहानियों के चुनाव के पीछे न कोई योजना है, न सिद्धान्त। जब जो कहानी पसन्द आ गई या जितनी फ़ुर्सत या मनःस्थिति सामने हुई, उसी हिसाब से कहानी चुन ली गई। चूँकि इन सारी कहानियों के अनुवाद की अवधि मोटे रूप से दस-पन्द्रह साल (1952-65) रही है, इसलिए शायद भाषा भी एक-सी नहीं है। फिर भी सम्भवतः पठनीय है।

—भूमिका से

More Information
Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 2008
Edition Year 2015, Ed. 2nd
Pages 207p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
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Editorial Review

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Rajendra Yadav

Author: Rajendra Yadav

राजेन्द्र यादव

जन्म : 28 अगस्त, 1929; आगरा।

शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), 1951; आगरा विश्वविद्यालय।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘देवताओं की मूर्तियाँ’, ‘खेल-खिलौने’, ‘जहाँ लक्ष्मी कैद है’, ‘अभिमन्यु की आत्महत्या’, ‘छोटे-छोटे ताजमहल’, ‘किनारे से किनारे तक’, ‘टूटना’, ‘ढोल और अपने पार’, ‘चौखटे तोड़ते त्रिकोण’, ‘वहाँ तक पहुँचने की दौड़’, ‘अनदेखे अनजाने पुल’, ‘हासिल और अन्य कहानियाँ’, ‘श्रेष्ठ कहानियाँ’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘सारा आकाश’, ‘उखड़े हुए लोग’, ‘शह और मात’, ‘एक इंच मुस्कान’ (मन्नू भंडारी के साथ), ‘मंत्र-विद्ध और कुलटा’ (उपन्यास); ‘आवाज तेरी है’ (कविता-संग्रह); ‘कहानी : स्वरूप और संवेदना’, ‘प्रेमचन्द की विरासत’, ‘अठारह उपन्यास’, ‘काँटे की बात’ (बारह खंड), ‘कहानी : अनुभव और अभिव्यक्ति’, ‘उपन्यास : स्वरूप और संवेदना’ (समीक्षा-निबन्ध-विमर्श); ‘वे देवता नहीं हैं’, ‘एक दुनिया : समानान्तर’, ‘कथा जगत की बागी मुस्लिम औरतें’, ‘वक़्त है एक ब्रेक का’, ‘औरत : उत्तरकथा’, ‘पितृसत्ता के नए रूप’, ‘पच्चीस बरस : पच्चीस कहानियाँ’, ‘मुबारक पहला क़दम’ (सम्पादन); ‘औरों के बहाने’ (व्यक्ति-चित्र); ‘मुड़-मुडक़े देखता हूँ’... (आत्मकथा); ‘राजेन्द्र यादव रचनावली’ (15 खंड)।

प्रेमचन्द द्वारा स्थापित कथा-मासिक ‘हंस’ के अगस्त, 1986 से 27 अक्टूबर, 2013 तक सम्पादन। चेख़व, तुर्गनेव, कामू आदि लेखकों की कई कालजयी कृतियों का अनुवाद।

निधन : 28 अक्टूबर, 2013

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