Narak Le Janewali Lift

मेरे लिए अनुवाद दो भाषाओं की क्षमता, सम्भावना और शब्द-शक्तियों को खँगालने और सही अर्थ या मन्तव्य पकड़ सकने की चुनौती के रूप में आता है। यहाँ दोनों भाषाओं की अपनी बनावट ही नहीं, भौगोलिक स्थितियों और संस्कृतियों के साथ अलग समयों की यात्रा भी करनी पड़ती है। सौ-दो सौ या हज़ार साल पहले के समाज-समय को आज के मिज़ाज में ढालना सिर्फ़ शब्दार्थ देना ही नहीं है। इस प्रयास में प्रायः नाश अपनी भाषा का ही होता है। हमारे दिमाग़ पर मूल पाठ इतना हावी होता है कि अपनी भाषा-प्रकृति की तरफ़ ध्यान ही नहीं दे पाते।
अनुवाद में मैं पहली जवाबदेही अपनी भाषा के प्रति मानता हूँ। वह मूल के प्रति ईमानदार होने के साथ अधिक से अधिक सहज, सम्प्रेषणीय और प्रवाहपूर्ण होनी चाहिए। इसके लिए ज़रूरी है कि या तो आप स्वयं मूलपाठ से मुक्त होकर अनुवाद का संशोधन करें या दूसरे ऐसे व्यक्ति से मदद लें जो मूल से आक्रान्त न हो।
इन कहानियों के चुनाव के पीछे न कोई योजना है, न सिद्धान्त। जब जो कहानी पसन्द आ गई या जितनी फ़ुर्सत या मनःस्थिति सामने हुई, उसी हिसाब से कहानी चुन ली गई। चूँकि इन सारी कहानियों के अनुवाद की अवधि मोटे रूप से दस-पन्द्रह साल (1952-65) रही है, इसलिए शायद भाषा भी एक-सी नहीं है। फिर भी सम्भवतः पठनीय है।
—भूमिका से
Language | Hindi |
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Format | Hard Back, Paper Back |
Publication Year | 2008 |
Edition Year | 2015, Ed. 2nd |
Pages | 207p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14 X 1 |
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