Mantra-Viddh Aur Kulta

Fiction : Novel
Author: Rajendra Yadav
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Mantra-Viddh Aur Kulta

इस किताब में प्रख्यात कथाकार राजेन्द्र यादव के एक साथ दो लघु उपन्यास ‘मंत्रविद्ध’ और ‘कुलटा’ संगृहीत हैं।

‘मंत्रविद्ध’ प्यार की खुरदरी कहानी है—आज की मूर्तिकला की तरह–––तारक और सुरजीत कौर के बीच एक तीसरा ‘व्यक्ति’ और है, और वह है प्यार। तारक अपने को समझाते हुए, दूसरे आदमी की निगाह से सारी स्थिति को देखता है और स्वयं आतंकित रहता है कि क्या सचमुच वीरता का वह क्षण उसी ने धारण किया था...क्षण अथवा आवेश-भरे दबाव का शायद एक ऐसा विस्फोट, जिसका अनुभव केवल कायर ही कर सकता है। यानी परम वीरता के काम पक्के कायर के सिवा कोई दूसरा नहीं कर सकता!...

‘कुलटा’ प्यार के एक दूसरे धरातल की व्यथा–कथा है। मिसेज तेजपाल, जैसे अकेले पहाड़ी झरने के एकान्त किनारों और घाटियों की हरियल सलवटों की अँगड़ाई लेती भूलभुलैया…मखमली बाँहें और रेशमी बाल–––एक अप–टू–डेट अभिजात सौन्दर्यमयी नारी...

लेकिन उसने तो अपने पवित्र प्यार की ही राह चुनी थी। यह स्त्री के अपने चुनाव की कहानी है जिसको हमारा आधुनिक समाज कोई मान्यता नहीं देता। यदि वह अपनी राह स्वयं चुनती है तो उसके लिए कोई क्षमा नहीं है। इसे ही वह चुनौती देती है!...मिसेज तेजपाल पागल और कुलटा नहीं तो क्या है?

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Language Hindi
Format Hard Back, Paper Back
Publication Year 1995
Edition Year 1995, Ed. 1st
Pages 178p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 18.5 X 12.5 X 1.5
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Editorial Review

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Rajendra Yadav

Author: Rajendra Yadav

राजेन्द्र यादव

जन्म : 28 अगस्त, 1929; आगरा।

शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), 1951; आगरा विश्वविद्यालय।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘देवताओं की मूर्तियाँ’, ‘खेल-खिलौने’, ‘जहाँ लक्ष्मी कैद है’, ‘अभिमन्यु की आत्महत्या’, ‘छोटे-छोटे ताजमहल’, ‘किनारे से किनारे तक’, ‘टूटना’, ‘ढोल और अपने पार’, ‘चौखटे तोड़ते त्रिकोण’, ‘वहाँ तक पहुँचने की दौड़’, ‘अनदेखे अनजाने पुल’, ‘हासिल और अन्य कहानियाँ’, ‘श्रेष्ठ कहानियाँ’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘सारा आकाश’, ‘उखड़े हुए लोग’, ‘शह और मात’, ‘एक इंच मुस्कान’ (मन्नू भंडारी के साथ), ‘मंत्र-विद्ध और कुलटा’ (उपन्यास); ‘आवाज तेरी है’ (कविता-संग्रह); ‘कहानी : स्वरूप और संवेदना’, ‘प्रेमचन्द की विरासत’, ‘अठारह उपन्यास’, ‘काँटे की बात’ (बारह खंड), ‘कहानी : अनुभव और अभिव्यक्ति’, ‘उपन्यास : स्वरूप और संवेदना’ (समीक्षा-निबन्ध-विमर्श); ‘वे देवता नहीं हैं’, ‘एक दुनिया : समानान्तर’, ‘कथा जगत की बागी मुस्लिम औरतें’, ‘वक़्त है एक ब्रेक का’, ‘औरत : उत्तरकथा’, ‘पितृसत्ता के नए रूप’, ‘पच्चीस बरस : पच्चीस कहानियाँ’, ‘मुबारक पहला क़दम’ (सम्पादन); ‘औरों के बहाने’ (व्यक्ति-चित्र); ‘मुड़-मुडक़े देखता हूँ’... (आत्मकथा); ‘राजेन्द्र यादव रचनावली’ (15 खंड)।

प्रेमचन्द द्वारा स्थापित कथा-मासिक ‘हंस’ के अगस्त, 1986 से 27 अक्टूबर, 2013 तक सम्पादन। चेख़व, तुर्गनेव, कामू आदि लेखकों की कई कालजयी कृतियों का अनुवाद।

निधन : 28 अक्टूबर, 2013

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