Jahan Lakshmi Quaid hai

Author: Rajendra Yadav
Edition: 2024, Ed. 7th
Language: Hindi
Publisher: Radhakrishna Prakashan
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Jahan Lakshmi Quaid hai
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साहित्य की धारा जहाँ मोड़ लेकर सारे परिदृश्य को नया कर देती है, निश्चय ही वहाँ कुछ रचनाएँ होती हैं। ‘जहाँ लक्ष्मी क़ैद है’ ऐसी ही एक कहानी है। ‘नई कहानी’ आन्दोलन की एक आधार-कथा रचना के रूप में ‘जहाँ लक्ष्मी क़ैद है’ का उल्लेख किए बिना स्वतंत्रता के बाद की हिन्दी कहानी को नहीं समझा जा सकता।

स्वतंत्रता ने जिन सपनों को जगाया था, उन्हें आपसी सम्बन्धों में तिलमिल कर टूटते देखना, महसूस करना और लिखना हिन्दी कहानी को नया स्वरूप दे रहा था। सम्बन्धों, मानसिकताओं और भाषा में उतरती द्वन्द्वात्मकता में अकेला, अनसमझा व्यक्ति मोहभंग की त्रासदी का साक्षात् प्रतीक है।

हालाँकि ‘नई कहानी’ का प्रारम्भ ‘प्रतीक’ (सम्पादक अज्ञेय) के अगस्त, 1951 के अंक में प्रकाशित राजेन्द्र यादव की कहानी ‘खेल-खिलौने’ से माना जाता है, मगर ‘जहाँ लक्ष्मी क़ैद है’ ‘नई कहानी’ आन्दोलन का अनिवार्य कथा-संग्रह है।

इसी संग्रह में है ‘एक कमज़ोर लड़की की कहानी’ नाम की दूसरी बेहद चर्चित कहानी। ‘लंच टाइम’ और ‘रौशनी कहाँ है’ जैसी कहानियाँ सिर्फ़ ऐतिहासिक दृष्टि से ही महत्तपूर्ण नहीं हैं, वे आज भी प्रासंगिक हैं।

‘जहाँ लक्ष्मी क़ैद है’ संग्रह को पढ़ना एक पीढ़ी के मानसिक इतिहास से होकर गुज़रना है।

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Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Publication Year 2001
Edition Year 2024, Ed. 7th
Pages 166p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
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Rajendra Yadav

Author: Rajendra Yadav

राजेन्द्र यादव

जन्म : 28 अगस्त, 1929; आगरा।

शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी), 1951; आगरा विश्वविद्यालय।

प्रकाशित पुस्तकें : ‘देवताओं की मूर्तियाँ’, ‘खेल-खिलौने’, ‘जहाँ लक्ष्मी कैद है’, ‘अभिमन्यु की आत्महत्या’, ‘छोटे-छोटे ताजमहल’, ‘किनारे से किनारे तक’, ‘टूटना’, ‘ढोल और अपने पार’, ‘चौखटे तोड़ते त्रिकोण’, ‘वहाँ तक पहुँचने की दौड़’, ‘अनदेखे अनजाने पुल’, ‘हासिल और अन्य कहानियाँ’, ‘श्रेष्ठ कहानियाँ’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘सारा आकाश’, ‘उखड़े हुए लोग’, ‘शह और मात’, ‘एक इंच मुस्कान’ (मन्नू भंडारी के साथ), ‘मंत्र-विद्ध और कुलटा’ (उपन्यास); ‘आवाज तेरी है’ (कविता-संग्रह); ‘कहानी : स्वरूप और संवेदना’, ‘प्रेमचन्द की विरासत’, ‘अठारह उपन्यास’, ‘काँटे की बात’ (बारह खंड), ‘कहानी : अनुभव और अभिव्यक्ति’, ‘उपन्यास : स्वरूप और संवेदना’ (समीक्षा-निबन्ध-विमर्श); ‘वे देवता नहीं हैं’, ‘एक दुनिया : समानान्तर’, ‘कथा जगत की बागी मुस्लिम औरतें’, ‘वक़्त है एक ब्रेक का’, ‘औरत : उत्तरकथा’, ‘पितृसत्ता के नए रूप’, ‘पच्चीस बरस : पच्चीस कहानियाँ’, ‘मुबारक पहला क़दम’ (सम्पादन); ‘औरों के बहाने’ (व्यक्ति-चित्र); ‘मुड़-मुडक़े देखता हूँ’... (आत्मकथा); ‘राजेन्द्र यादव रचनावली’ (15 खंड)।

प्रेमचन्द द्वारा स्थापित कथा-मासिक ‘हंस’ के अगस्त, 1986 से 27 अक्टूबर, 2013 तक सम्पादन। चेख़व, तुर्गनेव, कामू आदि लेखकों की कई कालजयी कृतियों का अनुवाद।

निधन : 28 अक्टूबर, 2013

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