Facebook Pixel

Nai Sadi Ki Pehchan : Shrestha Dalit Kahaniya-Hard Cover

Special Price ₹165.75 Regular Price ₹195.00
15% Off
Out of stock
SKU
9788180310140
Share:
Codicon

हिन्दी क्षेत्र में दलित लेखन शुरू तो बहुत पहले हो गया था पर उसकी पहचान बनने में देर लगी। पहले हिन्दी में दलित लेखकों और चिन्तकों द्वारा दलित चेतना और संघर्ष को लेकर वैचारिक, ऐतिहासिक और सामाजिक लेखन हुआ। हिन्दी में दलित लेखन का यह एक महत्त्वपूर्ण दौर माना जाएगा। इसके बाद रचनात्मक लेखन का दौर शुरू हुआ। हिन्दी में दलित रचनात्मक लेखन का इतिहास ज़्यादा लम्बा नहीं है। बीसवीं सदी के उत्तरार्ध में दलित लेखक हिन्दी में सामने आए। हिन्दी रचनाजगत में दलित लेखकों की सक्रियता तीन क्षेत्रों में सामने आई। उन्होंने बड़े पैमाने पर रचनात्मक साहित्य लिखा। दलित लेखकों की कविताएँ और कथाकृतियाँ प्रकाशित हुईं। राजेन्द्र यादव लिखते हैं—दलित साहित्यकारों की यह मजबूरी है कि वे सिर्फ़ अपने निजी अनुभवों को ज़मीन पर जीने के संघर्षों और स्थितियों का इन्दराज करें। हाँ, सबसे निचली गहराइयों से उछल-उछलकर आनेवाली ये तस्वीरें इतनी ख़ौफ़नाक हैं कि सारे समाज को दहलाकर रख देती हैं।” दलित कथा रचनाओं को इसी पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए। उनमें अपने समय और इतिहास का समाजशास्त्र भी है और स्थितियों से ऐसी मुठभेड़ भी जो व्यवस्था में बुनियादी परिवर्तन के लिए प्रयत्नशील है। इन कथा रचनाओं में मात्र यथार्थ नहीं है। उनकी कृतियाँ यथार्थ की शल्यक्रिया भी करती हैं। लेकिन इस सामाजिक शल्यक्रिया के बावजूद दलित रचनाकार की समस्याएँ जीवन में ही नहीं साहित्य की दुनिया में पहले से ज़्यादा जटिल और लगभग हिंसक हो गई हैं।

 

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2004
Edition Year 2012, Ed. 2nd
Pages 160p
Price ₹195.00
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1
Write Your Own Review
You're reviewing:Nai Sadi Ki Pehchan : Shrestha Dalit Kahaniya-Hard Cover
Your Rating
Mudra Rakshas

Author: Mudra Rakshas

मुद्राराक्षस

जन्म : 21 जून, 1933; बेहटा गाँव, लखनऊ।

1955 से 1960 तक कोलकाता में पत्रकारिता। 1963 से आकाशवाणी, दिल्ली में नौकरी। 1976 में इस्तीफ़ा देकर लखनऊ में रहते हुए स्वतंत्र लेखन। नाटक के क्षेत्र में अनेक नाटकों का निर्देशन। अन्य ललित-रूपंकर कलाओं में गहरी रुचि।

अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र और राजनीति के विषयों के विख्यात टिप्पणीकार। सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर आन्दोलनों में व्यापक भागीदारी।

उपन्यास, नाटक, कहानी, व्यंग्य, आलोचना आदि की लगभग 40 पुस्तकें प्रकाशित।

अनेक रचनाएँ अन्य भाषाओं में अनूदित।

निधन : 13 जून, 2016

Read More
Books by this Author
New Releases
Back to Top