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'Na' Ki Jeet Hui-Hard Cover

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9788183617017
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‘‘न’ की जीत हुई’ के. सुरेश की संस्मरणात्मक कहानियों की दूसरी पुस्तक है। वस्तु, शैली और संरचना की दृष्टि से इसे उनकी पहली पुस्तक 'इक्कीस बिहारी और एक मद्रासी' का विस्तार माना जा सकता है; अर्थात् प्रस्तुत संग्रह की नौ कहानियाँ भी पाठक को पिछले संग्रह की ग्यारह कहानियों के अनुभव संसार में शामिल कर अनुभूति के कुछ और मार्मिक स्थलों की ओर ले जाती हैं

सुरेश जी वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी हैं अपनी दीर्घकालीन सेवा के दौरान उन्होंने मध्य प्रदेश एवं अन्य राज्यों में विभिन्न प्रशासनिक दायित्वों का निर्वहन किया है इस अवधि में भाँति-भाँति के लोगों से उनका साक्षात्कार हुआ है, क़िस्म-क़िस्म की समस्याओं से उन्होंने मुठभेड़ की है और तरह-तरह की घटनाओं का वे हिस्सा बने हैं कहीं संघर्ष, कहीं सहानुभूति, कहीं कृतज्ञता का भाव इस पुस्तक में संकलित रचनाएँ ऐसे

व्यक्तियों, परिस्थितियों, घटनाओं, अनुभवों और भावों का साक्षात्कार हैं, जो संवाद के इच्छुक हैं ये संस्मरण एक ऐसे चैतन्य प्रशासक की रागात्मक अभिव्यक्ति हैं, जिसका चित्त शुद्ध और संवेदना जाग्रत
है

इन रचनाओं की सहजता और कथ्य के स्तर पर बरती गई ईमानदारी के माध्यम से अभिव्यक्ति की सच्चाई को परखा जा सकता है इसे एक प्रशासक के अनुभव का निचोड़ कहा जा सकता है यह निचोड़ ‘हम सिंगल ही अच्छे थे’ में प्रशासकों के बँगलों पर स्थायी समस्या के रूप में उपस्थित ‘अच्छे’ अथवा ‘अनुकूल’ भूत्या की तलाश के रोचक प्रसंग के रूप में देखा जा सकता है ‘दिल में जो तमन्ना थी’, ‘कैसे नहीं लिखूँ’, ‘बाक़ी सब ठीक है’, ֹ‘कटी नाक की अमर कहानी’, ‘कलेक्टर साहब के बँगले की गाय’ आदि संस्मरण भी रोचक मुहावरों, प्रसंगों और घटनाओं की सार्थक भूमिका के साथ किसी ज्वलन्त समस्या और उसके निराकरण के लिए किए गए प्रयासों की प्रशासनिक सूझ से जुड़ते हैं

इन संस्मरणों के मार्फ़त तत्कालीन मध्य प्रदेश के दूरस्थ अंचलों, ख़ास तौर पर जनजाति बहुल ज़िलों की विषम स्थितियों, कठिन जीवन-संघर्ष और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की वास्तविकता का पता भी चलता है

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2015
Edition Year 2015, Ed. 1st
Pages 123p
Price ₹300.00
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.3
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K. Suresh

Author: K. Suresh

के. सुरेश

जन्म : कर्नाटक राज्य के शिवमोगा ज़िले के लक्कावल्ली ग्राम में।

आप मध्य प्रदेश कैडर के 1982 बैच के आई.ए.एस. अधिकारी हैं। सुरेश जी अपने सेवाकाल में राज्य एवं केन्द्र शासन में विभिन्न प्रशासनिक पदों पर कार्यरत रहे हैं।

इस दौरान मानवीय संवेदनाओं से जुड़े विभिन्न अनुभवों से दो-चार होना पड़ा। अपने इन अनुभवों को ‘इक्कीस बिहारी और एक मद्रासी’ शीर्षक संस्मरण संग्रह के रूप में हिन्दी में प्रस्तुत करने का एक अहिन्दी मातृभाषी का प्रयास है। ‘ ‘न’ की जीत हुई’ एक अन्य महत्त्वपूर्ण और चर्चित कृति है।

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