आज की नकारात्मक समाजार्थिक परिस्थितियों और कम अवसरों के बरक्स बढ़ती स्पर्द्धा के बीच ख़ासकर हमारे युवाओं के सामने सफल जीवन की आकांक्षा एक बड़ी चुनौती बन गई है। हताशा एक सामान्य सामाजिक स्थिति है और हर आनेवाली पीढ़ी उसके सामने और ज़्यादा असहाय दिखाई देती है।
इसीलिए ऐसे संस्थानों, लोगों और पुस्तकों की बाढ़ आ गई है जो युवाओं को तरह-तरह से सफल होने के सूत्र थमाते रहते हैं; व्यक्तित्व-विकास के नाम पर उन्हें अधकचरी और भ्रामक सामग्री देते रहते हैं।
यह पुस्तक इस पूरे घटाटोप में एक अनूठी पद्धति के साथ सामने आती है और युवाओं को सफलता के वास्तविक अर्थ समझाते हुए इस तरह निर्देशित करती है कि वे धनार्जन को ही सफलता न मानें, बल्कि अपने वजूद की सम्पूर्ण उपलब्धि के रूप में उसे देखें।
'श्रेयस्कर लक्ष्यों की उत्तरोत्तर प्राप्ति ही सफलता है'—अर्ल नाइटिंगेल की इस परिभाषा को आधार बनाते हुए यह किताब सरलता से हमारी सोच, हमारे संस्कार और विचार-शैली को मनोवैज्ञानिक ढंग से एक अलग धरातल पर ले जाती है।
उपसंहार में स्वयं के मूल्यांकन की एक सरल प्रणाली इसे और मूल्यवान बनाती है।
Language | Hindi |
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Binding | Paper Back |
Publication Year | 2006 |
Edition Year | 2006, Ed. 1st |
Pages | 151p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Radhakrishna Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 13.5 X 1 |