Morche Par Vidageet

Author: Vihag Vaibhav
Edition: 2023, Ed. 1st
Language: Hindi
Publisher: Rajkamal Prakashan
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Morche Par Vidageet
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सवर्ण-सत्ता अगर एक दुर्ग है, जो है ही, तो विहाग की ये कविताएँ ठीक उसके सामने खड़े होकर उसके ऊपर किया गया आक्रमण हैं।
विहाग अपनी इन कविताओं में दलित-दमन के पीड़ाजनक बिम्बों को उन तमाम कटघरों से निकाल लाए हैं जहाँ उत्पीड़न और दमन को मात्र भोथरी सहानुभूति के छींटों से ठंडा कर सहनीय बना दिया जाता रहा है। उनकी कविताएँ जाति की व्यवस्था से उपजे अब तक के दुख को एक गतिशीलता देना चाहती हैं, वे चाहती हैं वह कहीं पहुँचे, कि यदि जरूरी है तो युद्ध हो, लेकिन उसे केवल अकादमिक विमर्श बनाकर लाभदायक लेकिन दिशाहीन वस्तु में न बदल दिया जाए।
विहाग का कवि अपने शत्रु को पहचानता है, उसकी ताकत और कमजोरियों को भी जानता है, ताकत के किन-किन रूपों में उसके अवतार सम्भव हैं; यह भी समझ उन्हें है। इसलिए वे धर्म के ठेकेदारों को भी उसी तुर्शी के साथ रेखांकित करते हैं, जाति के शक्तिशालियों को भी, और बहुमत के शिखरस्थों को भी। 
ये कविताएँ सिर्फ अपने स्पष्ट इरादों के लिए ही नहीं, पीड़ा की अभिव्यक्त‍ि के लिए अपनी भाषि‍क सामर्थ्य के लिहाज से भी मुख्यधारा से अलग दिखाई पड़ती हैं। अपने आक्रोश को सुचिंतित और विस्फोटक बिम्बों में हथियार की तरह गढ़ देना—यह एक दुर्लभ क्षमता है जो इस संग्रह की लगभग हर कविता में दिखाई पड़ती है। और यह चीज इन्हें कविता से ज़्यादा एक आह्वान में बदल देती है। सवर्ण की सर्वव्यापी, अति-दृश्यमान और आक्रामक मौजूदगी के प्रति वे हर क्षण सचेत हैं और इतिहास के दूरस्थ बिन्दुओं से वर्तमान तक फैली उसकी परम्परा से भिज्ञ भी। उनकी कविताएँ मिथकों के लौह-कोष में सुरक्षित बैठे उन देवताओं तक को अपनी युद्धभूमि में घसीट लाती हैं जिन तक कोई तीर, कोई पत्थर नहीं पहुँचता, और जिन्हें पवित्रता के भय-प्रसारक मैकेनिज़म द्वारा  हर आलोचना से बाहर कर दिया जाता रहा है। देश में कोरोना-काल के नाम से जाने गए समय को लेकर इस संग्रह में पाँच कविताएँ हैं, और यह कहना गलत नहीं होगा कि ये कोरोना की शारीरिक-सामाजिक और नैतिक आपदा को लेकर लिखी गईं सबसे अच्छी कविताओं में से हैं।

More Information
Language Hindi
Binding Paper Back
Publication Year 2023
Edition Year 2023, Ed. 1st
Pages 160p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 20 X 13 X 1
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Vihag Vaibhav

Author: Vihag Vaibhav

विहाग वैभव
विहाग वैभव का जन्म 30 अगस्त, 1994 को अपने ननिहाल ऊदपुर (जौनपुर) में हुआ। गाँव सिकरौर, जिला जौनपुर, उत्तर प्रदेश में विपन्नता और अभावजनित अन्य सामाजिक विद्रूपताओं में बचपन बीता। छुटपन में हुए रोड एक्सीडेंट ने जानलेवा लम्बी न्यूरो बीमारी दी जो किशोर होने तक साथ-साथ रही। 
हिन्दी की लगभग सभी चर्चित पत्रिकाओं में विहाग की कविताएँ प्रकाशित हैं और मराठी, बांग्ला, असमिया, उड़िया, उर्दू, अंग्रेजी आदि भाषाओं में भी अनूदित व प्रकाशित हुई हैं। साल 2022 में पटना विश्वविद्यालय के परास्नातक के कोर्स में ‘प्रचलित परिभाषाओं के बाहर महामारी’ शृंखला कविता सम्मिलित की गई। 
विहाग ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. की है। वे प्रतिष्ठित पुरस्कार ‘भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार’ से सम्मानित हैं। ‘मोर्चे पर विदागीत’ पहला काव्य-संग्रह है।
ई-मेल : vihagjee1993@gmail.com

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