व्रात्य बसु अपने आपमें नाटक की एक पाठशाला हैं। वे नाटककार, अभिनेता, निर्देशक, नाट्य समीक्षक एवं बेहतरीन फिल्म निर्देशक हैं, जिनकी पैनी दृष्टि और सूक्ष्म विवेचन नाटक के छोटे से छोटे शिल्प को भी महत्त्वपूर्ण बनाकर मंच से लेकर फिल्म तक पहुँचा देती है। नाट्य विधा को मनुष्य जीवन का सहज प्रकाशन मानने वाले व्रात्य बसु के नाटक समाज-परिवर्तन की ठोस भूमि निर्मित करने में मील का पत्थर माने जा सकते हैं। इनके नाटकों की बौद्धिकता और मानवीय भावनाएँ अपनी स्थानीयता को प्रकट करते-करते दिन ब दिन वैश्विक होती जाती है। हमारे दैनंदिन नागरिक जीवन के एक-एक पल के ताप-उत्ताप को नाटक के भीतर समा देने की अद्भुत कला व्रात्य की लेखनी की जादुई विशेषता है। आधुनिक के अन्तर्मन का डर, उदासीनता या फिर प्रेम, रोमांस, व्रात्य के नाटकों में अपनी सुन्दरता और असुन्दरता के साथ सहज ही प्रकट हो उठते हैं और उनके पाठक तथा दर्शक उस अन्तर्दृष्टि को प्राप्त कर लेते हैं। उनके छह बहुचर्चित नाटकों के इस संकलन में, हर एक नाटक नई चिन्तन और एक नई चेतना को अभिव्यक्त करता है।
विषय की वैविध्यता हो या शोध एवं परीक्षण की दृष्टि उनकी सृष्टि एकरसता की शिकार कभी नहीं बनी। उनकी सृजनशीलता की पराकाष्ठा ही है कि काल के भीतर खड़े होकर भी वे कालोत्तर में पहुँचने की क्षमता रखते हैं। प्रस्तुत संग्रह में उनका ‘क्रेऊसा द क्वीन’, ‘मीरज़ाफ़र’, अनुशोचना’, ‘अन्तिम रात’, ‘एक दिन अलादीन’ या फिर ‘इला गुढ़ैषा’ प्रत्येक नाटक इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। चाहे विधा ऐतिहासिक हो या पौराणिक, मिथक, फैंटेसी हो या राजनीतिक व्यंग्य, आधुनिक या फिर उत्तर-आधुनिक उसके पाठ एवं मंचन दोनों ही पाठकों एवं दर्शकों के लिए एक नई उपलब्धि होते हैं। उनकी नाट्य भाषा एवं संवाद ओजपूर्ण और चमत्कृत कर देने वाले हैं। आशा है कि उनके नाटकों का यह संग्रह बांग्ला के साथ-साथ निःसन्देह हिन्दी साहित्य की भी अमूल्य निधि मानी जाएगी।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 2022 |
Edition Year | 2022, Ed. 1st |
Pages | 280p |
Translator | Prateek Singh |
Editor | Not Selected |
Publisher | Rajkamal Prakashan |
Dimensions | 22 X 14.5 X 2 |