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Meghdoot : Ek Adhyayan-Paper Back

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महाकवि कालिदास की कालजयी कृति ‘मेघदूत’ सदियों से प्रेम और विरह की श्रेष्ठ अभिव्यक्ति के रूप में समादृत रही है। 

संस्कृत साहित्य में ‘उपमा कालिदासस्य’ प्रसिद्ध उक्ति है ही और इस कृति में कालिदास की रचनात्मकता शिखर पर है। इसीलिए ‘मेघदूत’ शताब्दियों से काव्य का प्रतिमान रहा है। रसिकों-विज्ञजनों में महान कृतियों के विशेष अध्ययन की सुस्थापित परम्परा रही है ताकि कृतियों में निहित विशेष भावों, सन्दर्भों, उक्तियों-अन्योक्तियों, कथाओं-अन्तर्कथाओं का खुलासा कर रचना का पूरा आनन्द लिया जा सके, और यदि यह अध्ययन डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल जैसे इतिहास-संस्कृति-मर्मज्ञ का हो तो पाठक रचना-रस से आप्लावित हो उठेंगे।

डॉ. अग्रवाल ने स्वयं लिखा : ‘‘यह अध्ययन ‘मेघदूत मीमांसा’ के नाम से 1927 की शरद ऋतु में लिखा गया था। उस समय मैं यौवन के ललाम भाव से परिचित ही हुआ था और मेरा मन उसके अतिरेक सुखों की उस भावभूमि के लिए उन्मुक्त था, जो ‘मेघदूत’ काव्य का सनातन धरातल है। न जाने किस पूर्व पुण्य से काशी विश्वविद्यालय में जब मैं बी.ए. की शिक्षा प्राप्त कर रहा था, तब किसी एकान्त दिवस में स्वर्गिक ज्योति की कोई किरण मेरे मानस में वह अभिज्ञान ले आई, जिसने मेरे लिए इस काव्य का अर्थ ही बदल डाला और इसके स्थूल रूप को सूक्ष्म बाण से बेध दिया। उसने एक साथ ही अध्यात्म और श्रृंगार के नील-लोहित धनुष से ‘मेघदूत’ के भावलोक को जीतकर मुझे भी उसका नागरिक बना लिया।’’

अरसे से अनुपलब्ध इस कृति का प्रकाशन हमारा गौरव है और काव्य-रसिकों के लिए उल्लास का अवसर भी।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back, Paper Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2020
Edition Year 2023, Ed. 2nd
Pages 256p
Price ₹299.00
Publisher Rajkamal Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 2
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Kalidas

Author: Kalidas

कालिदास

संस्कृत भाषा के सबसे महान कवि और नाटककार। उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएँ कीं। कालिदास अपनी अलंकारयुक्त सुन्दर, सरल और मधुर भाषा के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं। उनके ऋतु वर्णन अद्वितीय हैं और उनकी उपमाएँ बेमिसाल। संगीत उनके साहित्य का प्रमुख अंग है और रस का सृजन करने में उनकी कोई उपमा नहीं। उन्होंने अपने शृंगार रस प्रधान साहित्य में भी साहित्यिक सौन्दर्य के साथ-साथ आदर्शवादी परम्परा और नैतिक मूल्यों का समुचित ध्यान रखा है। उनका स्थान वाल्मीकि और व्यास की परम्परा में है।

रचनाएँ : ‘अभिज्ञान शाकुंतल’ (सात अंकों का नाटक); ‘विक्रमोर्वशीय’ (पाँच अंकों का नाटक); ‘मालविकाग्निमित्र’ (पाँच अंकों का नाटक); ‘रघुवंश’ (उन्नीस सर्गों का महाकाव्य); ‘कुमारसम्भव’ (सत्रह सर्गों का महाकाव्य); ‘मेघदूत’ (एक सौ ग्यारह छन्दों की कविता); ‘ऋतुसंहार’ (ऋतुओं का वर्णन)।

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