हिन्दी में मणिपुरी कविता के इतिहास एवं आलोचनात्मक अध्ययन पर केन्द्रित यह प्रथम कृति है। देवराज पिछले दो दशकों से मणिपुर में कार्यरत हैं और वहाँ हिन्दी प्रचार-प्रसार आन्दोलन तथा मणिपुरी साहित्य से निकट से जुड़े हैं। उनके प्रयास से विपुल परिमाण में मणिपुरी साहित्य हिन्दी में आ चुका है और हिन्दी की अनेक कृतियाँ मणिपुरीभाषी पाठकों को उपलब्ध हो चुकी हैं। स्वाभाविक रूप से मणिपुरी साहित्य के विविध पक्षों के सम्बन्ध में उनकी दृष्टि अधिक पैनी और तटस्थ है।
हिन्दी में भारतीय भाषाओं के साहित्य सम्बन्धी आलोचना तथा इतिहास ग्रन्थों की कमी नहीं है, किन्तु यह कृति कुछ अलग हटकर एक समर्थ भारतीय भाषा के काव्य का मूल्यांकन करते समय अन्य भारतीय भाषाओं और कुछ भारतेतर भाषाओं के साहित्य को भी ध्यान में रखती है। इससे अन्य भाषाओं के बीच मणिपुरी भाषा और उसके साहित्य का वास्तविक महत्त्व रेखांकित हो जाता है। यह वैशिष्ट्य इस पुस्तक को साहित्य के अध्ययन की परम्परा में अभिनव स्थान प्रदान करता है।
लेखक ने इसे इतिहास-ग्रन्थ नहीं कहा है, फिर भी पाठक इसकी सहायता से मणिपुरी कविता के इतिहास की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। ग्रन्थ का दूसरा खंड मणिपुरी भाषा में अनूदित-प्रकाशित होकर व्यापक स्वीकृति और प्रशंसा प्राप्त कर चुका है। यह इस ग्रन्थ की प्रामाणिकता के लिए पर्याप्त है। अभिव्यक्ति में निजता और लालित्य के कारण समग्र सामग्री कथा-साहित्य की सी रोचकता से परिपूर्ण है।
—प्रो. ऋषभदेव शर्मा
Language | Hindi |
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Binding | Paper Back |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publication Year | 2024 |
Edition Year | 2024, Ed. 1st |
Pages | 192p |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 22.5 X 14.5 X 2 |