Manak Hindi Ka Swarup

Linguistics
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Manak Hindi Ka Swarup

स्तरीय और मानक हिन्दी का रूप क्या है, हिन्दी की वर्तनी, शब्दावली और वाक्य-गठन में तथा पदनामों और शासकीय प्रारूपों में सही प्रयोग और एकरूपता हेतु उसका मानक स्वरूप किस प्रकार निर्धारित किया गया है, परिनिष्ठित हिन्दी और कार्यसाधक हिन्दी में क्या अन्तर है?—इन सब बिन्दुओं पर अनुभव के आलोक में स्तरीय और अधिकृत मार्गनिर्देश प्रस्तुत करना इस पुस्तक का प्रमुख उद्देश्य है।

शिक्षा के माध्यम के रूप में, पत्र-पत्रिकाओं में, मीडिया में तथा वाग्-व्यवहार में आज प्रयुक्त हो रही हिन्दी में पाई जानेवाली अशुद्धियों, असंगतियों और विद्रूपताओं के सुधार हेतु शुद्ध हिन्दी का सटीक विवरण भी इसमें दिया गया है।

इसके अलावा सम्पर्क भाषा के रूप में, केन्द्र एवं राज्यों की राजभाषा के रूप में, विधायन एवं न्याय-निर्णयन की भाषा के रूप में हिन्दी किस प्रकार उद्विकसित हो रही है, उस पर अधिकार प्राप्त करने, उसका समुचित अभ्यास करने और शब्दों एवं प्रारूपों हेतु सन्दर्भ लेने के लिए किन ग्रन्थों का सहारा लिया जाए, इसकी जानकारी भी इस ग्रन्थ में समाहित है।

साथ ही हिन्दी के उद्गम का इतिहास, उसके विकास में अहिन्दीभाषियों की भूमिका, विधि एवं न्याय की हिन्दी की दुरूहताएँ एवं अपेक्षाएँ, देवनागरी लिपि की विभिन्न बारीकियाँ, राष्ट्रीय आन्दोलनों में हिन्दी की भूमिका, पत्रकारिता की हिन्दी, राजभाषा हिन्दी, सम्पर्क भाषा हिन्दी आदि विभिन्न पक्षों का विवेचन भी इसमें समाविष्ट है।

परिशिष्ट के रूप में मानकीकरण एवं एकरूपता सम्बन्धी भारत सरकार के अनुदेश तथा स्तरीय शब्दकोशों और शब्दावलियों की जानकारी भी संलग्न है जिससे यह पुस्तक हर तरह से मार्गदर्शिका की भूमिका निभा सकेगी।

 

More Information
Language Hindi
Format Hard Back
Publication Year 2002
Edition Year 2010
Pages 203p
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publisher Radhakrishna Prakashan
Dimensions 22 X 14 X 1.5
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Editorial Review

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Kalanath Shastri

Author: Kalanath Shastri

कलानाथ शास्त्री

जन्म : 15 जुलाई, 1936; जयपुर

हिन्दी, अंग्रेज़ी, संस्कृत आदि का आद्योपान्त अध्ययन, एम.ए. (अंग्रेज़ी), साहित्याचार्य, साहित्य रत्न आदि उपाधियाँ, विभिन्न भाषाओं और तुलनात्मक भाषाविज्ञान में अनुसन्धान।

राजस्थान सरकार के भाषा विभाग में उपनिदेशक, राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी में भाषा सम्पादक, स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्रधानाचार्य, राजस्थान शासन के संस्कृत शिक्षा विभाग में निदेशक आदि पदों पर कार्य कर भाषा विभाग के निदेशक (1976-1994) पद से सेवानिवृत्त। राजस्थान संस्कृत अकादमी के अध्यक्ष (1995-98)। शासन हिन्दी विधायी समिति के सदस्य, ‘भारती’ संस्कृत मासिक के प्रधान सम्पादक, केन्द्रीय संस्कृत बोर्ड के सदस्य आदि के रूप में कार्यरत।

‘भाषा परिचय’, ‘आलोक’ आदि पत्रिकाओं के सम्पादन, वैज्ञानिक एवं पारिभाषिक शब्दावली आयोग की शब्दावलियों के संकलन तथा शासकीय शब्दावलियों, प्रारूपों, अनुवाद-कला आदि पर 48 ग्रन्थों द्वारा राजभाषा हिन्दी की साधना में संलग्न। स्तरीय पत्रिकाओं में 800 लेख एवं 200 शोध लेख हिन्दी में; शताधिक रचनाएँ एवं 200 लेख संस्कृत में; 30 लेख अंग्रेज़ी में प्रकाशित। ‘भारतीय संस्कृति’, ‘संस्कृति के वातायन’, ‘संस्कृत के गौरव-शिखर’, ‘संस्कृत साहित्य का इतिहास’, ‘आधुनिक संस्कृत गद्य’ आदि 12 ग्रन्थ हिन्दी में; ‘आख्यान वल्लरी’, ‘संस्कृत नाट्य वल्लरी’, ‘सुधीजन वृत्तम्’ आदि 8 ग्रन्थ संस्कृत में प्रकाशित। आकाशवाणी, दूरदर्शन आदि पर 500 से अधिक वार्ताएँ, चर्चाएँ आदि प्रसारित, 18 ग्रन्थ सम्पादित।

राजस्थान सरकार, भारत सरकार एवं साहित्यसेवी संस्थाओं की ओर से साहित्यसेवा के उपलक्ष्य में अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त। 1998 में संस्कृत वैदुष्य के लिए ‘राष्ट्रपति सम्मान’ प्राप्त। 66 साहित्यिक संस्थाओं से अध्यक्ष, संरक्षक, परामर्शक आदि के रूप में सम्बद्ध।

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