प्रस्तुत पुस्तक ‘लोकसंस्कृति में राष्ट्रवाद’ में शोध को एक ढाँचा प्रदान करने के लिए तीन लोक-कवियों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है जो लोक-चेतना के तीन कालखंडों में प्रतिनिधि हैं। लोकसंस्कृति के कुछ अन्य रूपों का उपयोग इतिहास लेखन और लोकसंस्कृति में किया गया है। इसमें सन् 1857 के ग़दर की झलक भी शामिल है। लोकसंस्कृति को समय में बाँधने के कारण इस अध्ययन की कई सीमाएँ बन गई हैं।
पुस्तक में अन्तःअनुशासनिक तकनीकों एवं प्रविधियों का उपयोग किया गया है। इसमें मौखिक इतिहास की उपलब्ध प्रविधि को विकसित करने का प्रयास है। पुस्तक छह खंडों में विभाजित है—‘राष्ट्रवाद का प्रमेय’, ‘इतिहास-लेखन और लोकसंस्कृति’, ‘रचना-काल (1857 से 1900 ई.) : लोक-सजगता एवं सुखदेव भगत की संघटना का वृत्तान्त’, ‘विरचना-काल (1900-1920 ई.) : लोकसंस्कृति में स्वीकार और बहिष्कार : निर्धिनराम की गाथा’, ‘पुनर्रचना-काल (1920-1947 ई.) : लोकचेतना की क्रियात्मक क्षमता का पुनर्निर्माण और कवि कैलाश का सन्दर्भ’ तथा ‘निष्कर्ष’।
पुस्तक निश्चय ही पठनीय और संग्रहणीय है।
Language | Hindi |
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Binding | Hard Back |
Publication Year | 1996 |
Edition Year | 2011, Ed. 2nd |
Pages | 108p |
Translator | Not Selected |
Editor | Not Selected |
Publisher | Lokbharti Prakashan |
Dimensions | 21.5 X 14.5 X 1 |