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Lahore Se Lucknow Tak-Hard Cover

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9789388211789
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‘लखनऊ से लाहौर तक’ में श्रीमती प्रकाशवती पाल ने ऐसी अनेक ऐतिहासिक घटनाओँ और व्यक्तियों के संस्मरण प्रस्तुत किए हैं जिनसे उनका प्रत्यक्ष और सीधा सम्पर्क रहा है। संस्करण क्रम-बद्ध रूप में 1929 से शुरू होते हैं। उस वर्ष सरदार भगत सिंह ने देहली असेम्बली में बम फेंका था। लाहौर कांग्रेस में आज़ादी का प्रस्ताव भी उसी वर्ष पास हुआ था।

क्रान्तिकारी आन्दोलन में प्रकाशवती जी किशोरावस्था में ही शामिल हो गई थीं। अनेक संघर्षों और ख़तरनाक स्थितियों के बीच में चन्द्रशेखर आज़ाद, भगवती चरण, यशपाल आदि क्रान्तिकारियों के निकट सम्पर्क में आईं। एक अभूतपूर्व घटना के रूप में 1936 में उनका विवाह बन्दी यशपाल से जेल के भीतर सम्पन्न हुआ।

इन और ऐसी अनेक स्मृतियों को समेटते हुए ये संस्मरण आज़ादी की लड़ाई और बाद के अनेक अनुभवों को ताज़ा करते हैं, साथ ही अनेक राजनीतिज्ञों, क्रान्तिकारियों और प्रसिद्ध साहित्यकारों के जीवन पर सर्वथा नया प्रकाश डालते हैं। यह पुस्तक पिछले पैंसठ वर्षों के दौरान राजनीति और साहित्य के कई अल्पविदित पक्षों का आधिकारिक, अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और पठनीय दस्तावेज़ है।

More Information
Language Hindi
Binding Hard Back
Translator Not Selected
Editor Not Selected
Publication Year 2019
Edition Year 2024, Ed. 4th
Pages 205p
Price ₹695.00
Publisher Lokbharti Prakashan
Dimensions 21.5 X 14 X 1.5
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Author: Prakashvati Pal

प्रकाशवती पाल


प्रसिद्ध क्रान्तिकारी और लेखक यशपाल की क्रान्तिकारी पत्नी। जन्म 31 जनवरी, 1914 को लाहौर के खत्री परिवार में।

प्रकाशवती पाल की गणना उन क्रान्तिकारियों में होती है जिन्होंने देश को स्वाधीन कराने में अपने जीवन के हर पल को अर्पण किया। जिनका क्रान्तिकारी गतिविधियों से परिचय विद्यार्थी जीवन से ही हो गया था।

लाहौर में विदेशी कपड़ों की होली में अपने गोटे-किनारी लगे कपड़े जला दिए और लाहौर कांग्रेस में वालंटियर बनकर आज़ादी की लडाई में भाग लिया।

फिर व्यग्र हो उसी दौरान परिवार को छोड़ ब्रिटिश सरकार को चोट देने के लिए क्रान्तिकारी दल में शामिल हो गईं। लगातार आर्थिक सहायता भी दी। यशपाल और चन्द्रशेखर आज़ाद से सफल निशाना लगाने की शिक्षा पाई।

देहली कांस्परेसी केस में वह मुख्य अभियुक्त थीं। ब्रिटिश सरकार का इनाम उनके सिर पर था। सन् 1934 में प्रकाशवती दरियागंज, दिल्ली में गिरफ़्तार हो गईं।

सन् 1936 में बोली जेल में यशपाल से एक रुपया चार आना में विवाह कर, पढ़ाई में व्यस्त हो दाँतों की सर्जन बन गईं।

मार्च 1938 में यशपाल के रिहा होने पर ‘विप्लव' पत्रिका के प्रकाशन में सहयोग दे सफल बनाया। यशपाल को आर्थिक चिन्ताओँ से मुक्त कर प्रकाशन का काम सँभाल लिया। जीवन-भर यशपाल के साथ सुखी दाम्पत्य जीवन जीकर उन्होंने साहित्य-सृजन में बहुमूल्य योगदान किया।

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